इतिहास में शोधकर्ताओं द्वारा सरस्वती नदी को सिंधु और अन्य नदियों की जननी बताया हैं। ऋग्वेद में सरस्वती नदी को अम्बीतमे,नदीतमें,देवीतमे सरस्वती प्लाक्ष्वती,वेद्समृति,वेदवती का उल्लेख मिलता है।
सरस्वती उदगम मार्ग
महाभारत में मिले वर्णन के अनुसार सरस्वती नदी हरियाणा के यमुना नगर से थोड़ा ऊपर ,शिवालिक पहाड़ी से नीचे आदिबद्री नामक स्थान से निकलती है।प्राचीन काल में हिमालय से जन्म लेने के बाद यह नदी पंजाब,हरियाणा,राजस्थान,गुजरात के रास्ते पाकिस्तान के सिंध प्रदेश तक जाकर अरब की खड़ी में गिरती थी।.ऋग्वेद के भौगोलिक वर्णन के अनुसार यह नदी यमुना और सतलुज के बीच पूर्व से पश्चिम को बहती थी। विषेशज्ञों के अनुसार नदी का तल हड़प्पा कालीन सभ्यता से भी प्राचीन बताया है।.राखीगढ़ी जो की सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे प्राचीन शहर है वह सरस्वती नदी के किनारे पर ही बसा हुआ था।राखीगढ़ी सभ्यता की निरंतर खुदाई से मिले अवशेषों से यह अनुमान लगाया जा रहा है की राखीगढ़ी सभ्यता हड़प्पा सभ्यता से भी ज्यादा प्राचीन सभ्यता है,ऐसा दावा हरियाणा सरकार ने 26 मार्च 2014 में किया था।
ऐसा लोगो को धारणा है की प्रयागराज में सरस्वती नदी,गंगा व यमुना नदी से मिलती है,त्रिवेणी अथवा संगम के नामक यह स्थल जाना जाता है।लोगो की धारणा है की पतली धारा के रूप में अब भी सरस्वती नदी वहा विद्यमान है। लगभग चार हजार ईसाo पूर्व यह सुखने लग गई।1.1893 ईस्वी में अंग्रेज इंजिनियर ओल्ड हैम ने सरस्वती नदी की खोज करवाई नदी की सुखी घाटी से गुजरने के दौरान,कई तथ्यों पर विचार करने के बाद परिकल्पना की,कि यह स्थान प्राचीन सरस्वती नदी का है। उन्होंने बताया की उपमज्जना अथवा विन्मशन नामक स्थान पर इसके विलुप्त होने के प्रमाण मिलते है।2.फ्रेंच वैज्ञानिक प्रोटो हिस्टोरियन मायिकन डैनिनो ने नदी की उत्पत्ति और इसके विलुप्त होने के संभावित कारणों की खोज की। डैनिनों के अनुसार- पांच हजार वर्ष पहले सरस्वती नदी का बहाव पश्चिम से पूर्व यमुना और सतलुज के पानी में मिलता था। इन्होने बताया की यह तीनों नदिया हिमालय ग्लेशियर से निकलती थी। जिसके अनुसार सरस्वती नदी का अनुमानित मार्ग पश्चिमी गढ़वाल के बंदरपंच गिरी पिण्ड से संभवत: निकला होगा। प्रारम्भ में यमुना इसके साथ-साथ बहा करती थी।.
कुछ दूर जा कर यह आपस में मिल गई हो। आगे जाकर पटियाला से लगभग 25 किलो मीटर दूर दक्षिण में सतलुज नदी(श्तार्दु) से जा मिली। आगे जाकर घग्घर नदी में विलीन हो कर यह राजस्थान और बहावलपुर में हाकरा के रूप आगे बढ़ी और सिंध प्रांत के नारा में होते हुए कच्छ के रण में विलीन हो गई। इस क्षेत्र में यह सिंधु नदी के समांतर बहती थी।.3.इसरो वैज्ञानिक ऐ के गुप्ता की जांच टीम के अनुसार यह प्रमाणित होता है की राजस्थान में अभी भी प्राचीन सरस्वती नदी के साक्ष्य मिलते है। उनकी जांच अनुसार थार मरुस्थल में पानी का कोई स्रोत नहीं है,परंतु कुछ स्थानों पर ताज़े पानी के स्रोत मिले है।.जैसलमेर जैसे इलाकों में 150 mm से भी कम बारिश होती है,इन सब के बावजूद 50-60 मीटर गहराई में भू जल पाया गया है। इन इलाकों में कुंए सालभर नही सूखते। पानी की जांच करने पर पाया गया पानी में ट्राईटीईम की मात्रा नगण्य है जिसका मतलब यह हुआ की पानी को किसी नई तकनीक द्वारा वहा नही भरा गया है।.
इसके साथ ही आइसोटोप विश्लेषण की रिपोर्ट से यह भी पता चला है की रेत की टिलो के नीचे जो ताज़ा पानी है कई हजार वर्षों पुराना है। इन तथ्यों से ये अनुमान लगाना आसान हो जाता है कि यह ताज़े पानी के भंडार सूखे तल वाली सरस्वती नदी के है।.4.5 मई 2015 में कुरूक्षेत्र विश्व विद्यालय ने इसकी प्रमाणिकता की पुष्टि की,कि सरस्वती नदी सबसे प्राचीन नदियों में से एक है। राजस्थान के नदी क्षेत्र में पाए जाने वाले कुओं का परीक्षण करने पे पाया गया की सभी कुओं के जल में एक ही प्रकार का रसायन है जबकि नदी वाले क्षेत्र को छोड़ कर अन्य स्थानों के कुओं का रासायनिक विश्लेषण दूसरे प्रकार का था।.5.अमेरिका के उपग्रह ने भूमि के अंदर दबी इस नदी के चित्र धरती पर भेजे,जिसका विश्लेषण अहमदाबाद के रिसर्च सेंटर द्वारा किया गया चित्रों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया की शिमला के निकट शिवालिक पहाड़ों से लेकर कच्छ की खड़ी तक सुखी नदी का क्षेत्र है। और कही-कही इसकी चौड़ाई 6 मीटर तक है,टीम के लोगो ने यह भी बताया की एक समय काल में सतलुज और यमुना नदी इस नदी से मिलती थी।6.केंद्रीय जल बोर्ड के वैज्ञानिकों को हरियाणा,पंजाब,और राजस्थान के जिले जैसलमेर में नदी की मौजूदगी के ठोस प्रमाण मिले है।
नदी के विलुप्त होने के मुख्य कारक
पृथ्वी के आंतरिक बदलाव के कारण नदी भूमिगत हो गई। इस विषय का मुख्य प्रमाण सेटलाइट तस्वीर में नदी के प्रवाह में आए ग्राउंड फॉल्ट है। यह परिवर्तन ज्यादातर सरस्वती और सिंधु नदी के क्षेत्र में देखा गया। अगर सरस्वती नदी पुनः जीवित होयी तो पश्चिम और उत्तरी राजस्थान की सुखी धरती के लिए बहुत उपयोगी होगा।
नदी को कहां देखा जा सकता है
सरस्वती नदी को बहते हुए देखने का एक मात्र स्थान है उत्तराखंड में बद्रीनाथ जिले का माना ग्राम है। यहां सरस्वती नदी के बहते हुए देखा जा सकता है। यहां माता सरस्वती का पावन मंदिर भी है। नदी के पानी को देखने से पता चलता है की नदी का पानी बहुत साफ है,400 मीटर आगे जाकर अलकनंदा से मिलने के बाद नदी धरातल में विलुप्त हो जाती हैं।
अलकनंदा
अलकनंदा भारत के उत्तरी भाग की एक महत्वपूर्ण नदी है। यह गंगा की दो प्रमुख धाराओं में से एक है,दूसरी भागीरथी नदी है। ये दोनों नदियाँ उत्तराखंड राज्य के देवप्रयाग शहर में मिलती हैं,जहाँ वे मिलकर गंगा नदी बनाती हैं,जो हिंदू धर्म में सबसे पवित्र और पूजनीय नदियों में से एक है।अलकनंदा नदी उत्तराखंड में बद्रीनाथ के पास दो ग्लेशियरों,सतोपंथ और भागीरथ खरक के संगम से निकलती है। अपने स्रोत से,यह देवप्रयाग में भागीरथी नदी में विलय से पहले,जोशीमठ,चमोली और रुद्रप्रयाग जैसे शहरों से गुजरते हुए उत्तराखंड के सुंदर और पहाड़ी क्षेत्र से होकर बहती है।इसके बाद नदी गंगा के रूप में अपना मार्ग जारी रखती है,भारत के उत्तरी मैदानों से होकर बहती है और अंततः बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है।अलकनंदा नदी न केवल अपने धार्मिक महत्व के लिए महत्वपूर्ण है,बल्कि राफ्टिंग और अन्य जल-आधारित गतिविधियों के लिए अपने चुनौतीपूर्ण और सुरम्य विस्तार के कारण साहसिक उत्साही और पर्यटकों को भी आकर्षित करती है।.जिस पूरे क्षेत्र से होकर यह बहती है वह प्राकृतिक सुंदरता से समृद्ध है,जो इसे तीर्थयात्रियों,प्रकृति प्रेमियों और ट्रेकर्स के लिए एक लोकप्रिय गंतव्य बनाता है।
तत्तकालीन समाचार
घटना 28 दिंसबर 20024 की है जब राजस्थान के जैस्लमेर जिले के मोहनगढ़ राज्य क्षेत्र में बोरिंग के दौरान इतना पानी निकले लगा कि क्षेत्र का जन-जीवन त्रस्त हो गया। नवभारत टाइम की खबर के अनुसार बोरिंग के दौरान 22 टन की बोरिंग मशिन धरती में समा गयी और पुरा क्षेत्र पानी से लबालब भर पुरा इलाका तावाब में परिवर्तित हो गया।.राजस्थान की सरकार द्वारा क्षेत्र में धारा 144 एवं भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता BNSS की धारा 163 भी लगाई गयी है।.30 दिसम्बर को सिनियर भू-जल वैज्ञानिक डाक्टर नारायण इनखीया अपनी टीम के साथ घटना स्थल पर पहुचें । परिक्षण के दौरान उन्होने बताया कि पानी के बहाव के साथ तरशरी काल की रेत निकली है जिससे उन्होने अनुमान लगाया है कि यह जल लगभग 60 लाख साल पुराना हो सकता है। उन्होने अपने बयान के दौरान यह भी दावा किया कि ये यह सरस्वती नदी के साक्ष्य हो सकते है।.
उन्होने आगे बताया कि इससे पहले भी इस प्रकार की पानी की घटना नाथना और मोहनगढ़ के क्षेत्र में हो चुकी है मगर इतनी मात्रा में पानी निकलने की घटना पहली बार हुयी है। आगे उन्होने बताया इस प्रकार का पानी पत्थरों के बीच में सुरक्षित रहता है मगर बोरिंग के दौरान जब पत्थरों में पंचर किया जाता है तो इस प्रकार कि घटना सामने आती है। बताया जा रहा है कि पानी का फौवारा लगभग 10 फिट की उंचाई को छु रहा था। आगे उन्होने कहा की यह कहना कि यह सरस्वती नदी ही है यह पूर्णतया सत्या नही होगा इसके लिए एक उच्च स्तर की जांच का होना जरुरी है।.
उपरोक्त बयान के अलावा उन्होंने इस बात का भी खुलासा किया कि इस क्षेत्र में पहले ही भाभा अटोमिक रिसर्च सेंटर की तरफ से जांच के दौरान यह दावा कि जा चुका है कि इस क्षेत्र में पहले सरस्वती नदी बहती थी।.टाइमस् आफ इण्डिया की खबर के मुताबिक डाक्टर नारायण ने बताया कि यह पानी बलुआ पत्थर और मिट्टी की 200 मीटर की मोटी परत से ढका हुआ था,परिणास्वरुप जब पानी मिट्टी की 200 मीटर की परत को पार करके सतह पर पहुंचता है तो दबाव के कारण फौवारे का रुप धारण कर लेता है। आगे रिपोर्ट में बताया गया की तरशरी काल की मिट्टी 660 लाख साल से लेकर 26 लाख साल के समयकाल में पायी जाती थी।
इस घटना की शुरुआत 28 दिसंबर 2024 को तब हुयी,जब बीजेपी नगर मंडस अध्यक्ष विक्रम सिंह के खेत में बोरिंग का काम चल रहा था 850 फुट की खुदाई के बाद पानी का तेज प्रेशर शुरु हो गया। फिलहाल तीन दिनों के लगातार रिसाव के बाद पानी का बहाव बंद हो गया। हालंकि वैज्ञानिकों का यह दावा किया है कि यह कभी भी प्रारम्भ हो सकता है,अतः इसके लिए एक बड़ी जांच होना जरुरी है।.कुछ विशेषयज्ञ इस घटना को सरस्वती नदी के पुनर्जीवित होने का प्रतीक मानते है जोकि रेगिस्तान की बंजर पड़ी ज़मीन के लिए खुशी की बात होगी।.
सोर्स विकिपीडिया,टाइम्स आफ इण्डीया,नवभारत टाइम्स
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