9b45ec62875741f6af1713a0dcce3009 Indian History: reveal the Past: वैदिक संस्कृति की प्रचलित प्रथाएं भाग:-3

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मंगलवार, 14 मार्च 2023

वैदिक संस्कृति की प्रचलित प्रथाएं भाग:-3

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परिचय:

दोस्तो इस ब्लॉग में हम उत्तर वैदिक काल अथवा वैदिक सभ्यता से संबंधित प्रथाओं के बारे में पढ़ेंगे जो की उस समय का कल के अनुसार चलन में थी। 1.दास प्रथा,2.सती प्रथा,3.संल्लेखना पद्धति,4.जोहर प्रथा,5.अष्ट विवाह6.पंचमहा यज्ञ।.

1.दास प्रथा

भारत में दास प्रथा की प्राचीनता ऋग्वैदिक काल में प्रचलित थी। यहां पुरष दास के दान का उल्लेख काम मिलता है। मगर नारी दासी को दान की वस्तु के रूप में स्वीकार किया गया है। दास कृषि वा अन्य किसी उत्पादनात्मक कार्यों में नहीं लागए जाते थे।.

नोट:सिंधु सभ्यता में दास प्रथा का प्रचलन नहीं था।
i.उत्तर वैदिक साहित्य में दास दासी को उपहार में दिए जाने की प्रथा थी।
ii.मौर्य कालीन समाज में अर्थशास्त्र में 9 प्रकार के दासों का वर्णन मिलता है। मौर्य काल की एक सामाजिक महत्वपूर्ण घटना कृषि कार्यों में दासों को लगाया जाना था। मोर्यकाल के शासक अशोक के अभिलेखों में भी दासों का उल्लेख मिलता है।.
iii.गुप्तकाल में दास प्रथा विद्यमान थी। नारद ने 15 प्रकार के दासों का उल्लेख किया है । दसमुक्ति का सर्वप्रथम अनुष्ठान नारद द्वारा ही किया गया।
iv.गुप्तोत्तर काल में दास प्रथा में वृद्धि हुई। उन्हे किसी सामाजिक वर्ग में नहीं माना गया था। लेख पद्धति के अनुसार वस्तुओ के विनिमय में दासों का निर्यात समुद्री मार्ग से पश्चिमी देशों को होता था। दास दासियों को दान में देने की प्रथा इस काम में बहोत ही प्रचलित हो गई थी।
V.बौद्ध मठों और मंदिरों में दास दान के रूप में दिए जाते थे। चोल साम्राज्य में भी देवदासी प्रथा व दासप्रथा के प्रमाण मिले है। मंदिर में देव पूजा के लिए रहने वाली दासी को देवदासी कहा जाता था। उन्हे नियमित वेतन दिया जाता था।
vi.विजयनगर साम्राज्य में भी दास प्रथा प्रचलित थी। निकली कोंटी ने लिखा है कि जो कर्जदार अपना ऋण नहीं चुका पाते थे उन्हें सर्वत्र ऋणदाता अपनी संपत्ति या दास बना लिया करते थे।.

2. सती प्रथा:

अथर्व वेद के अनुसार सती प्रथा की औपचारिकता को पूरा करने के लिए पत्नी अपने मृत पति के साथ चिता पर लेटती थी। नोट सिंधु सभ्यता में सतिप्रथा या पर्दाप्रथा नहीं थी।वैदिक समाज में सतिप्रथा नहीं प्रचलित थी रामायण के मूल अंश में इसका उल्लेख नहीं हैं लेकिन उत्तरकांड में वेदवंती की माता के सती होने का उल्लेख है।
i. कौटिल्य के अर्थशास्त्र में सती प्रथा का कोई प्रमाण नहीं मिलता लेकिन युनान के लेखकों ने उत्तर पश्चिम में सैनिकों की स्त्रियों के सती होने का उल्लेख किया है।
ii.संगम काल में सती प्रथा का प्रचलन था यह प्रथा विशेष कर उच्च सैनिक वर्गो में थी।.
iii.सती प्रथा के प्रचलन का सर्वप्रथम अभिलेखीय प्रमाण गुप्तकाल का है 510 ईसा के एरन अभिलेख से यह पता चलता है की गुप्त नरेश भानुगुप्त का मित्र गोपराज हुणो के विरुद्ध लड़ता हुआ मारा गया और उसकी पत्नी का अग्नि में जलने का उल्लेख मिलता है।
ivकल्हण की राजतरंगणी के सती प्रथा के अनेक उदाहरण मिलते है।
v विजय नगर साम्राज्य में संगमवंश में सती प्रथा स्त्रियां अपने पति की मृत्यु के बाद मुक्ति का प्रतीक माना जाता था परंतु यह स्वैच्छिक होती थी।
रोकथाम करने वाले शासकों में केवल अकबर का नाम सामने आता है परंतु वो भी इस प्रथा को रोकने में असफल रहा।.1929 ईस्वी में भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बैंटिक की सती प्रथा पे लाए गए कानून को लागू करवाने के लिए राजाराम मोहान राय ने सरकार की मदत की । और इसके साथ सती प्रथा को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया।

3.संलेखना पद्धति:

इस प्रथा में जैन समुदाय के लोग भूखे रहकर जान देते थे। इतिहास का
के अनुसार कई जैन विधवाएं इस प्रथा को अपनाने की बजाय सती हो गई।
राजमाता मचीकाब्बे ने पुत्री की मौत के बाद इस प्रथा का अनुसरण किया था ।

4.जोहर प्रथा:

इस प्रथा में महिलाएं अपमानित होने की बजाय आग में कूदकर जान देना बेहतर समझती थी ।
चित्तौड़ की महारानी पद्मिनी ने जौहर कर जान दी थी।.

5.अष्टविवाह:

इस में विवाह के 8 रूपो का वर्णन है।
1.देव विवाह पुरोहित या वह को सांस्कृतिक या पूजा पाठ के अनुष्ठान करवाता है इसके साथ विवाह कर्म देव विवाह कहलाता है।
2.आर्य विवाह दो जोड़ी बैल या दुसरे शब्दों में कन्या का मूल्य देकर किया गया विवाह।.
3.ब्रह्म विवाह एक ही वर्ण में एवं सामान्य या एक समान उम्र में किया गया विवाह।.
4.प्रजाप्त्य विवाह: बिना लेन देन के योग्य वर में विवाह।.
5.असुर विवाह: कन्या को उसके माता पिता से खरीद लिया जाता है।(राजादशरथ व कैकेई विवाह)।.
6.राक्षस विवाह जबरदस्ती से किया गया अथवा इच्छा के विरुद्ध किया गया विवाह।.
7.पैशाच विवाह बातो को छिपा कर या धोखा देकर किया गया विवाह।.
8.गंधर्व विवाह प्रेम करने के बाद या जिससे प्रेम किया उससे किए गए विवाह को गंधर्व विवाह कहा जाता है।.नोट:1.राक्षस य असुर विवाह:कन्या का मूल्य देकर ब्रह्म विवाह,पुरोहित के साथ किया विवाह देव विवाह,योग्य वर के साथ बिना लेन देन के किया विवाह प्रजापत्य विवाह प्रचलित थे। यह विवाह ब्राह्मण वर्ण में प्रचलित था।2.राक्षस अथवा असुर विवाह:शक्त्रिय समुदाय प्रेम विवाह और शुद्रो और वैश्य समुदाय में असुर विवाह होता था।3.मनुस्मृति में इन आठ प्रकार के विवाह का उल्लेख मिलता है।

6.पंचमहा यज्ञ:

1.ब्रह्म यज्ञ:वेदों का पाठ कर ब्रह्मा की पूजा और स्मरण किया जाता था।
2.पितृ यज्ञ:सामयिक श्राद्ध था तर्पण द्वारा पितरों की पूजा की जाती थी।
3.मनुष्य यज्ञ:अतिथि सत्कार करके मनुष्य की पूजा की जाती थी।
4.देव यज्ञ:देवताओं को प्रसन्न करने हेतु पवित्र अग्नि में घी एवं सुगंधित द्रव्यों का हवन किया जाता था।
5.भूत यज्ञ:भूतो को प्रसन्न करने हेतु भोजन,अन्न द्वारा भूतो की पूजा की जाती थी।

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