9b45ec62875741f6af1713a0dcce3009 Indian History: reveal the Past: आर्य सभ्यता व वैदिक संस्कृति:- भाग 2

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मंगलवार, 14 मार्च 2023

आर्य सभ्यता व वैदिक संस्कृति:- भाग 2

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ऋग्वैदिक काल का भौगोलिक विस्तार

प्राचीन आर्य सप्तसिंधु नामक क्षेत्र में रहते थे,जिसका अर्थ है 7 नदियों वाला क्षेत्र है। यह क्षेत्र मुख्यतया दक्षिण एशिया के उत्तर पश्चिम क्षेत्र से लेकर यमुना नदी तक क्षेत्र में फैला हुआ था।7 नदियों में iसिंधु,iiवितस्ता झेलम,iii असिकनी चेनाब iv परुषणी रवि v विपासा व्यास vi शूतुड्री सतलज vii सरस्वती घग्घर आदि है।.आर्यो के 5 कबीले थे जिनका समुदाय पंचजन कहलाता था,लेकिन और भी जन रहे होंगे। ये जान आपस में लड़ते थे और कभी कभी अर्युत्तर जनों का भी सहारा लेते थे।इस कुल का सर्वप्रथम उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। हमारे देश का नाम भारत भी इसी कबीले ले नाम पर ही पड़ा है। पुरोहित वशिष्ठ भरत और त्रतत्सु दोनो कबीलों के समर्थक थे। ये दोनो कबीले आर्य शासक वंश से संबंधित थे।


नोट
भरत राजवंश का 10 राजाओं के साथ विरोध था जिनमें 5 आर्य जनों के प्रधान और शेष आर्यो ओत्तर जनों के थे। भरत और 10 राजाओं के बीच जो लड़ाई हुई दशराज्ञ युद्ध के रूप में विदित है।.1.यह युद्ध परूषणी नदी के तट पे हुआ,जिसकी पहचान आजकी रवि नदी से की जाती है और इस प्रकार भारत कुल की प्रभुता स्थापित हुई।.2.पराजित जनों ने पुरुजन सबसे महान थे। कालांतर में भरतो और पुरुओ के बीच मित्रता हो गई और दोनो ने मिलकर नया शासक कुल बनाया जो कुरू के नाम से प्रसिद्ध हुआ।.3.कुरू जनों ने पंचालो के साथ मिलकर उच्च गंगा मैदान में अपना संयुक्त राज्य स्थापित किया।.4.कुरू पंचालों ने उत्तर वैदिक काल में बड़ा महत्व प्राप्त किया।


दशराज्ञ युद्ध

दस राजाओं की लड़ाई,जिसे दाशराज्ञ या दशराज्ञ के नाम से भी जाना जाता है,हिंदू धर्म के सबसे पुराने पवित्र ग्रंथों में से एक, ऋग्वेद में वर्णित एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक घटना है। यह एक महत्वपूर्ण घटना है जो प्रारंभिक इंडो-आर्यन संस्कृति और समाज में अंतर्दृष्टि प्रदान करती है।.ऋग्वेद के अनुसार, दस राजाओं की लड़ाई परुष्णी नदी (आधुनिक रावी नदी) के तट पर हुई थी और राजाओं के दो समूहों के बीच लड़ी गई थी। एक तरफ भरत राजा सुदास थे,जो तृत्सु जनजाति के नेता थे। दूसरी ओर प्रसिद्ध ऋषि और कान्यकुब्ज के राजा विश्वामित्र के नेतृत्व में दस राजा थे जिन्होंने सुदास का विरोध किया था।.यह लड़ाई प्राचीन भारत के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में विभिन्न जनजातियों और राज्यों के बीच लंबे समय से चली आ रही प्रतिद्वंद्विता और वर्चस्व के संघर्ष की परिणति थी। ऐसा माना जाता है कि यह लगभग 1500-1200 ईसा पूर्व हुआ था। दस राजाओं की लड़ाई में जीत सुदास और उसकी सेना ने कम संख्या में होने के बावजूद हासिल की थी।.ऐसा कहा जाता है कि सुदास के पुजारी वशिष्ठ ने युद्ध में देवताओं की शक्तियों का आह्वान करने और त्रित्सु जनजाति का समर्थन करने के लिए अनुष्ठान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। दस राजाओं की लड़ाई का वर्णन करने वाले ऋग्वैदिक भजन ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण माने जाते हैं।.क्योंकि वे न केवल संघर्ष का विवरण प्रदान करते हैं बल्कि प्रारंभिक वैदिक सभ्यता के सामाजिक,राजनीतिक और धार्मिक पहलुओं पर भी प्रकाश डालते हैं। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ऋग्वेद में वर्णित घटनाएँ,जिनमें दस राजाओं की लड़ाई भी शामिल है,प्राचीन मौखिक परंपराओं का हिस्सा हैं और इतिहासकारों और विद्वानों द्वारा व्याख्या और विश्लेषण के अधीन हैं। कई प्राचीन ऐतिहासिक घटनाओं की तरह,विवरण अलग-अलग दृष्टिकोण और आगे के शोध के अधीन हो सकते हैं।.


इंडो-आर्यन संस्कृति

इंडो-आर्यन,इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार की एक प्रमुख शाखा को संदर्भित करता है। इसमें मुख्य रूप से भारतीय उपमहाद्वीप में बोली जाने वाली निकट संबंधी भाषाओं का एक समूह शामिल है। इंडो-आर्यन भाषाओं का एक लंबा ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व है और ये आज भी व्यापक रूप से बोली जाती हैं और विभिन्न रूपों में उपयोग की जाती हैं।.माना जाता है कि इंडो-आर्यन भाषाओं का विकास भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी क्षेत्र में दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व के आसपास हुआ था। ये भाषाएँ प्रोटो-इंडो-आर्यन चरण से निकली हैं,जो बदले में,पहले की प्रोटो-इंडो-यूरोपीय भाषा से विकसित हुईं।.


कुछ सबसे प्रमुख इंडो-आर्यन भाषाओं में शामिल हैं:

1.संस्कृत: सबसे पुरानी ज्ञात इंडो-आर्यन भाषाओं में से एक,संस्कृत हिंदू धर्म की पवित्र भाषा और वेदों और अन्य धार्मिक ग्रंथों सहित प्राचीन भारतीय साहित्य की शास्त्रीय भाषा है।.2.प्राकृत: प्राकृत प्राचीन भारत में प्रयुक्त स्थानीय मध्य इंडो-आर्यन भाषाओं का एक समूह था। वे आम लोगों की बोली जाने वाली भाषाएँ थीं और उन्होंने बाद की क्षेत्रीय भाषाओं के विकास को प्रभावित किया।.3.पाली: पाली एक प्राचीन मध्य इंडो-आर्यन भाषा है जिसका उपयोग प्रारंभिक बौद्ध ग्रंथों, विशेषकर थेरवाद परंपरा में किया जाता है।.4.हिंदी: संस्कृत के आधुनिक वंशजों में से एक,हिंदी भारत की आधिकारिक भाषा है और लाखों लोगों द्वारा व्यापक रूप से बोली जाती है।.5.बंगाली, गुजराती, मराठी, पंजाबी और कई अन्य क्षेत्रीय भाषाएँ इंडो-आर्यन परिवार का हिस्सा हैं।.इंडो-आर्यन भाषाओं का प्रसार और विविधीकरण ऐतिहासिक कारकों जैसे प्रवासन,अन्य संस्कृतियों के साथ बातचीत और विभिन्न क्षेत्रीय राज्यों और साम्राज्यों के विकास से प्रभावित था। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि जबकि इंडो-आर्यन भाषाएं सामान्य भाषाई जड़ें साझा करती हैं,प्रत्येक भाषा की अपनी अनूठी विशेषताएं, बोलियां और विविधताएं होती हैं। वे भारतीय उपमहाद्वीप के विविध भाषाई और सांस्कृतिक परिदृश्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं।.


उत्तरवैदिक भौगोलिक विस्तार क्षेत्र

गंगा यमुना दोआबा के अंतर्गत सम्पूर्ण पश्चिमी उत्तर प्रदेश में फैल गए थे। पंजाब के आर्य जन दो प्रमुख कबीले पुरु और भरत नाम से विदित हुए।आरंभ में वे लोग दोआबा के ठीक छोर पर सरस्वती और दृष्टावती नदियों के प्रदेश में बसे। शीघ्र ही कुरुओ ने दिल्ली क्षेत्र और दोआब के ऊपरी भाग पर अधिकार कर लिया।.i.जो कुरुक्षेत्र नाम से प्रसिद्ध है। धीरे धीरे वे पंचालो से भी मिल गए जो दोआब के मध्य भाग पर अधिकार प्राप्त किया और इस कुरू पंचालों की सत्ता दिल्ली क्षेत्र पर और दोआब के ऊपरी भाग और मध्य भाग पर फेल गई।.ii.हस्तिनापुर को अपनी राजधानी बनाया जो मेरठ जिले में पड़ता है। कुरू कुल का इतिहास भारत-युद्ध के नाम प्रसिद्ध है जिसका महाभारत नमक विख्यात काव्य है। iii. यह माना जाता है कि महाभारत युद्ध या कोरवों और पांडवों के बीच हुआ था,हालाकि की ये दोनो कुरू कुल के ही थे।.सारे कुरू वंशो का नाश हो गया iv.प्राचीन कथाओं के अनुसार हस्तिनापुर बाढ़ में बह गया और कुरू वंश से को जीवित रहे वे इलाहाबाद के पास कौशांबी में जाकर बस गए।.V वैदिक लोग दोआब से पूर्व की और पूर्वी उत्तर प्रदेश के कौशल और उत्तरी भारत तक फैल गए,उत्तर वैदिक काल का अंत होते-होते ये लगभग 600 ईसा पूर्व का समय काल था।यद्धपि कौशल रामकथा से जुड़ा हुआ है,फिर भी वैदिक साहित्य में रामकथा का कोई उल्लेख नहीं मिलता है।.वैदिक साहित्य के 3 भाग में हम उस समय काल के अनुसार प्रचलित प्रथाओं के बारे में पढ़ेंगे।.

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