पर्वतीय देश
चेरा साम्राज्य (जिसे "चेरा राजवंश" भी कहा जाता है) के नाम से जाना जाता है,जो दक्षिण भारत के प्रमुख प्राचीन तमिल राजवंशों में से एक था। चेरा साम्राज्य वर्तमान केरल राज्य और तमिलनाडु के कुछ हिस्सों में अस्तित्व में था,और इसने रोमन साम्राज्य और प्राचीन दक्षिण पूर्व एशियाई राज्यों सहित अन्य प्राचीन साम्राज्यों के साथ व्यापार और सांस्कृतिक संबंधों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। चेरा साम्राज्य चोल और पांड्य राजवंशों के साथ तीन प्रमुख तमिल राजवंशों में से एक था,और यह लगभग तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से 12 वीं शताब्दी ईस्वी तक फला-फूला। इस राजवंश को (कुलशेखर राजवंश) भी कहा जाता है।.चेरा साम्राज्य के इतिहास और विवरण का इतिहासकारों द्वारा अच्छी तरह से अध्ययन किया गया है,और इसने शिलालेख,सिक्के और अन्य पुरातात्विक अवशेष छोड़े हैं जो इसके शासन,व्यापार नेटवर्क और सांस्कृतिक उपलब्धियों के बारे में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं।.संगमकालीन राज्यो में चेर राज्य सबसे प्राचीन राज्य माना जाता है। अशोक के वृहद शिलालेख में चेरो का उल्लेख केरल पुत्र के रूप में हुआ है।.चेर शब्द की उत्पत्ति तामिल शब्द चरल से हुई है जिसका अर्थ पर्वतीय क्षेत्र है। चेरपाद शब्द का प्रयोग एतरेय ब्रह्मण में भी प्रयोग किया गया है।
राजा चेरलतन
चेर राजा चेरलतन इस देश के स्वामी कहलाते थे। चेर साम्राज्य पश्चिम और उत्तर में फैला हुआ था। इसमें आधुनिक राज्य केरल और तमिलनाडु का हिस्सा सम्मिलित था।.चेर साम्राज्य में 1.उदियन चेरल 2.नेदूनजेरल आदन 3.कुट्टवन 4.शेंगटवन 5.पेरून्जेरल इरंपोरई 6.कुडक्कोइलंजेरल इरंपोराई नामक शासकों का नाम प्रमुख तौर पर सामने आता है।
1.उदियन चेरल
यह प्रथम चेर शासक थे। इसका समय काल 130ई0 जाता है। इनके संदर्भ में कहावत है कि इन्होने कुरुक्षेत्र में भाग लेने वाले सभी योद्धाओं को भोजन कराया था। इसी कारण इन्हें महाभोजन उदियन जेरल की उपाधि मिली।
2.नेदूनजेरल आदन
इनकी राजधानी मदुरै थी और इनकी उपाधि अधिराज थी। इनके द्वारा हिमालय तक विजय और उस पर्वत पर चेर राजचिन्ह अंकित करने की बात की गईं है। इनका चोल शासक एनलैंजेति चिन्न से संघर्ष हुआ।.संघर्ष में दोनो मारे गए और दोनों की रानियां सती हो गई।नेदूनजेरल आदन के समय में पश्चिमी जगत से व्यापार महत्वपूर्ण था। लेकिन व्यापार में बांधा कदम्बू नामक जनजाति करती थी जिसका इन्होने दमन किया। इनका समय काल 155 ई० था।.
3.कुट्टवन
नेदूनजेरल आदन के छोटे भाई कट्टटवन ने केंगु के युद्ध सफलता प्राप्त करके चेर राज्य को पूर्वी तथा पश्चिमी समुद्र तल तक विस्तृत कर दिया। इसने अनेक सामंतो को भी हराया।.इसके पास बड़ी संख्या में हाथी थे।इसने भी अधि राज की उपाधि धारण की थी। समय काल 180 ई० लगभग था।.
4.शेंगटवन
शेनगुट्टवन अथवा धर्मप्रयाण कुट्टवन चेर वंश का सबसे प्रतापी राजा थ। इनका गुण गान कविपर्णर ने भी किया था।.इनको को लाल यानी भला चेर भी कहा जाता था। इन्होने ने अधिराज की उपाधि धारण की।.इन्होने चेर राज्य में पत्नी पूजा भी प्रारम्भ की। इस बात का उल्लेख दशगीत में मिलता है। इस पूजा को कणगी पूजा भी कहा जाता था।.शिल्पआदिकारम के अनुसार पत्नि पूजा के प्रचलन में पंड्या तथा चोल शासकों के साथ श्री लंका के शासक भी सहायक हुए। चेर बालीपुरम के युद्ध में इन्होने 9 चोल शासकों को पराजित किया,और कद्दंबो को पराजित किया।.इसके बाद से इन्होने कदलपिरक्कोतीय अर्थात समुद्र को पीछे हटाने वाले की उपाधि धारण की।.इनके पास एक शक्तिशाली नौसेना थी।.कहा जाता है लाल शेनगुट्टवन ने उत्तर दिशा में चढ़ाई की ओर गंगा को पार किया।
5.पेरून्जेरल इरंपोरई
"पेरुंगेरल इरमपोराई"प्राचीन तमिल इतिहास और साहित्य का एक ऐतिहासिक व्यक्ति है। वह एक प्रसिद्ध चेर राजा थे जिन्होंने चेरा साम्राज्य पर शासन किया था,जो दक्षिण भारत के प्रमुख प्राचीन तमिल राजवंशों में से एक था।.पेरुन्गेरल इरमपोरई का उल्लेख विभिन्न प्राचीन तमिल संगम साहित्य में किया गया है,विशेष रूप से संगम साहित्य संग्रह में "पट्टिनापलाई" और "मदुरैकांची" के नाम से जानी जाने वाली कविताओं में। ये कविताएँ पेरुन्गेरल इरामपोराई के जीवन और शासन के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं और उस समय के दौरान चेरा साम्राज्य के सामाजिक-राजनीतिक और सांस्कृतिक पहलुओं पर प्रकाश डालती हैं।.पेरुन्गेरल इरामपोराई को अक्सर एक बुद्धिमान और परोपकारी शासक के रूप में मनाया जाता है। इन साहित्यिक कार्यों में कला और साहित्य के उनके संरक्षण पर जोर दिया गया है,जो उनके समय के कवियों,विद्वानों और कलाकारों के प्रति उनके समर्थन को दर्शाता है। चूंकि ऐतिहासिक रिकॉर्ड और जानकारी अलग-अलग हो सकती हैं,इसलिए पेरुन्गेरल इरामपोरई जैसी प्राचीन हस्तियों के अध्ययन को इस समझ के साथ करना आवश्यक है कि कुछ पहलू पौराणिक या पौराणिक तत्वों पर आधारित हो सकते हैं। ये चोल शासक कारिकाल का समकालीन था। यह समय का 190 ई० का था। इसके समय में आदिगैमान नडुमानअंजी तगडूर का शासक था। इसने दक्षिण में गन्ने की खेती की शुरवात की थी।.
6.पेरुम चेरल इरुम्पोराई
पेरुम चेरल इरुम्पोराई,जिसे पेरुम चेरल अथान के नाम से भी जाना जाता है,एक ऐतिहासिक व्यक्ति और चेरा साम्राज्य का एक महत्वपूर्ण शासक था,वह प्राचीन तमिल साहित्य में प्रसिद्ध चेर राजाओं में से एक हैं और संगम साहित्य में उनका प्रमुखता से उल्लेख किया गया है,विशेष रूप से "पट्टिनाप्पलाई" और "मदुरैकांची" कविताओं में।.ऐसा माना जाता है कि पेरुम चेरल इरुम्पोराई का शासनकाल सामान्य युग की प्रारंभिक शताब्दियों के दौरान हुआ था।.उन्हें एक बुद्धिमान और न्यायप्रिय शासक के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने अपने लोगों की परवाह की और अपने शासन के दौरान साहित्य,कला और संस्कृति के विकास को बढ़ावा दिया।.कवि कादियालुर उरुथिरन कन्नानार द्वारा लिखी गई एक कविता "पट्टिनाप्पलाई" में,पेरुम चेरल इरुम्पोराई की युद्ध में जीत, उनकी उदारता और कवियों और कलाकारों को संरक्षण देने के लिए प्रशंसा की गई है। कविता उनके शासन के तहत चेरा साम्राज्य के परिदृश्य और समृद्धि का स्पष्ट रूप से वर्णन करती है।
संगम साहित्य प्राचीन तमिल समाज के राजनीतिक,सामाजिक और सांस्कृतिक पहलुओं में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करता है,और पेरुम चेरल इरुम्पोराई का चित्र उस ऐतिहासिक टेपेस्ट्री का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना हुआ है। कई प्राचीन ऐतिहासिक शख्सियतों की तरह,यह पहचानना महत्वपूर्ण है कि पेरुम चेरल इरुम्पोराई के जीवन और शासन के कुछ पहलू मौखिक परंपराओं की प्रकृति और समय बीतने के कारण पौराणिक या पौराणिक तत्वों के साथ जुड़े हो सकते हैं।.यदि आप पेरुम चेरल इरुम्पोराई या चेरा साम्राज्य के बारे में अधिक जानने में रुचि रखते हैं, तो मैं प्राचीन दक्षिण भारतीय इतिहास और साहित्य में विशेषज्ञता रखने वाले इतिहासकारों और विद्वानों के कार्यों की खोज करने की सलाह देता हूं।.यह चेर वंश के अंतिम शासक थे। इनका समय काल लगभग 190 ई0 माना जाता है। लगभग 290 ई ० के एक अन्य चेर शासक का भी उल्लेख है। इसका नाम हाथी की आंख वाला शेय था। इसकी उपाधि मांदरजेर लइरंपोरई थी।.
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