9b45ec62875741f6af1713a0dcce3009 Indian History: reveal the Past: आंध्र प्रदेश का चोल साम्राज्य

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मंगलवार, 14 मार्च 2023

आंध्र प्रदेश का चोल साम्राज्य

Chol-vansh

परिचय

चोल साम्राज्य एक प्रमुख और शक्तिशाली राजवंश था जिसने प्राचीन और मध्ययुगीन काल के दौरान दक्षिण भारत के एक महत्वपूर्ण हिस्से पर शासन किया था। यह भारत के इतिहास में सबसे शानदार और लंबे समय तक चलने वाले राजवंशों में से एक था और इसने क्षेत्र की राजनीति,अर्थव्यवस्था,कला,संस्कृति और वास्तुकला पर गहरा प्रभाव छोड़ा। चोल राजवंश 9वीं शताब्दी से 13वीं शताब्दी ईस्वी तक मध्यकाल के दौरान अपने चरम पर पहुंच गया।.इसे तीन मुख्य चरणों में विभाजित किया गया है: प्रारंभिक चोल(लगभग तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से तीसरी शताब्दी सीई),मध्यकालीन चोल (लगभग 9वीं शताब्दी से 13वीं शताब्दी ),और 13वी शतब्दी के बाद के चोल (लगभग 13वीं शताब्दी सीई के बाद)। चोल साम्राज्य के कुछ प्रमुख पहलुओं में शामिल हैं-

1.राजनीतिक शक्ति चोलों ने एक केंद्रीकृत और सुव्यवस्थित प्रशासनिक व्यवस्था स्थापित की,जिसमें राजा केंद्रीय प्राधिकारी था। वे अपने कुशल शासन और सैन्य कौशल के लिए जाने जाते थे।. 2.विस्तार चोल शासकों ने सैन्य अभियानों और विजय के माध्यम से अपने साम्राज्य का विस्तार किया। उन्होंने दक्षिण भारत,श्रीलंका,मालदीव और दक्षिण पूर्व एशिया के कुछ हिस्सों पर विजय प्राप्त की।.3.व्यापार और अर्थव्यवस्था चोल व्यापार और वाणिज्य के महान संरक्षक थे। उनके व्यापक समुद्री व्यापार मार्गों ने दक्षिण भारत को अन्य क्षेत्रों से जोड़ा,जिससे आर्थिक समृद्धि को बढ़ावा मिला।.4.वास्तुकला-चोल काल में मंदिर निर्माण का स्वर्ण युग देखा गया। शानदार चोल मंदिर, जैसे तंजावुर में बृहदेश्वर मंदिर,उल्लेखनीय वास्तुकला उपलब्धियों को प्रदर्शित करते हैं और यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं।.5.साहित्य और संस्कृति चोल युग तमिल साहित्य और संस्कृति के लिए एक समृद्ध काल था। संगम साहित्य और कंबन और सेक्किझार जैसे कवियों की साहित्यिक रचनाएँ इस युग के कुछ मुख्य आकर्षण हैं। 6.पतन चोल साम्राज्य को बाहरी आक्रमणों,आंतरिक संघर्षों और क्षेत्रीय शक्ति केंद्रों में बदलाव से चुनौतियों का सामना करना पड़ा,जिससे बाद की शताब्दियों में उनके प्रभुत्व में धीरे-धीरे गिरावट आई। चोल साम्राज्य के अंततः पतन के बावजूद,उनकी विरासत का दक्षिण भारत में जश्न मनाया जाता है,और कला,संस्कृति और शासन में उनका योगदान भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना हुआ है।.

चोल का शाब्दिक अर्थ है नव प्रदेश या नया देश है। इसका विस्तार पेन्नार व वेल्लार नदियों के बीच था जिसे चोलमंडलम कहा जाता था।। सगंमगकालिन राजाओं में 3 प्रधान राज्यो में सर्वप्रथम चोलो का अभ्युदय हुआ। प्रारम्भ में चोल राज्य की राजधानी उत्तरी मानलूर थी,लेकिन ऐतिहासिक युग में उरैयुर हो गई। बाद में करिकल ने कवेरीपट्टनम पुहार नगर की स्थापना कर उसे अपनी राजधानी बनाया।.

प्रमुख शासक

1.उखप्पहरे इलन जेत चेन्नी 2.एलारा 3.करिकाल 4.पेरूनरकिल्ली 5.शेनगणान चोल सम्राज्य के प्रमुख शासक थे।

1.उखप्पहरे इलन जेत चेन्नी
चोल राज वंश का प्रथम ऐतिहासिक शासक,जिसकी राजधानी उरैयुर थी। कहा जाता है कि यह राजा युद्ध में अपनी सुंदर रथो की वजह से प्रसिद्ध था।.2.एलाराईसा पूर्व दूसरी सदी के मध्य में यह शासक गद्दी पर बैठा।यह चोल राज्य का प्रथम शासक था,जिसने श्री लंका पर विजय हासिल की और लगभग 50वर्षो तक वहां शासन किया।.3.करिकला करिकाला चोल,जिसे करिकाला चोलन के नाम से भी जाना जाता है, एक महान राजा और दक्षिण भारत में प्राचीन चोल राजवंश के सबसे प्रसिद्ध शासकों में से एक था। उनका उल्लेख प्राचीन तमिल साहित्य और शिलालेखों में किया गया है और उन्हें एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक व्यक्ति माना जाता है। माना जाता है कि करिकाला चोल का शासनकाल प्रारंभिक संगम काल के दौरान था,जो अनुमानतः पहली या दूसरी शताब्दी ई.पू.के आसपास था।.

हालाँकि,उस युग के ऐतिहासिक अभिलेखों की कमी के कारण,उनके जीवन और शासनकाल के कुछ पहलुओं को पौराणिक तत्वों के साथ मिलान कर पाना मुश्किल है। इसका समय काल लगभग 190 ई० माना जाता है करिकल का अर्थ है पांव जला व्यक्ति से हैं।प्रारंभ में करिकाल को पदच्युत करके कैद कर लिया था। पत्तुपात्तु में उसके पुनः गद्दी प्राप्त करने का वर्णन है। इसने दो प्रसिद्ध युद्धों से ख्याति प्राप्त की थी।.प्राचीन तमिल साहित्य के अनुसार,करिकाला चोल अपनी सैन्य कौशल,प्रशासनिक कौशल और जन कल्याण के प्रति समर्पण के लिए जाने जाते थे। वह वेनी की लड़ाई में अपनी महान जीत के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं,जहां उन्होंने राजाओं के एक संघ को हराया था। संगम साहित्य में महाकाव्य कविता "पट्टिनापलाई"उनकी उपलब्धियों और उनके शासन के दौरान चोल साम्राज्य की समृद्धि के बारे में जानकारी प्रदान करती है। करिकाला चोल के नाम और विरासत ने तमिल इतिहास और संस्कृति पर एक स्थायी प्रभाव छोड़ा है।.

i.वेणी का युद्ध
इस के बाद आत्महत्या कर ली थी पेरुमशेरल ने क्योंकि वो युद्ध में अपनी हार सहन न कर पाया और वहि करिकाल ने ग्यारह राजाओं में शामिल चेर तथा पांड्य राजाओं को भी पराजित किया था।.
ii.वाहैपपरंदलाई का युद्ध
इस युद्ध में करिकाल ने 9 छोटे शासकों को हराया। शिलप्पादिकआरम नामक ग्रंथ में कारिकाल द्वारा हिमालय तक भारत विजय की चर्चा है। इसने अनेक वैदिक यज्ञ भी किए।.
iii.श्री लंका विजय
करिकाल ने श्री लंका पर भी विजय हासिल की थी। कारिकाल ने पूहार (कवेरिपत्तनम)की स्थापना की और अपनी राजधानी उरैउर से कावेरीपट्टनम में स्थांतरित की थी। इसके अतिरिक्त कावेरी नदी के किनारे 160 किमी लंबा बांध बनवाया था। इसका निर्माण 12000 गुलामों से करवाया गया, जिन्हे श्री लंका से बंदी बनाकर लाया गया था। यह नगर व्यापार व वाणिज्य का बहुत बड़ा केंद्र था।.iv शिल्पादीकारम में करिकाल की पुत्री आदिमंदी के विषय में सूचना मिलती है। इसका विवाह चेर राजकुमार आत्तनअत्ति से हुआ था,जो कावेरी नदी में डूब कर मर गया था,लेकिन आदिमंदी ने अपने सतीत्व से इसे पुनर्जीवित कर दिया था।.v करिकाल के बाद इसका एक बेटा अथवा पौत्र नेडू मुड्डूकिल्ली गद्दी पर बैठा। मणिमेखलै पुस्तक के अनुसार इसके शासन काल में करियारू में एक भयंकर युद्ध हुआ,जिसमे इलंगोंन नमक चोल राजकुमार ने चेर तथा पंड्या राजकुकुमारो को हराया था।.

4.पेरूनर किल्ली

यह अत्यन्त पराक्रमी चोल शासक था। चोल राजाओं में इसी ने राजयूस जैसे महायज्ञ का अनुष्ठान किया।.तमिलनाडु और दक्षिण भारत के अन्य क्षेत्रों में विभिन्न शिलालेख और मंदिर संरचनाएं उनके योगदान और उनके युग की सांस्कृतिक उपलब्धियों की गवाही देती हैं। कई प्राचीन ऐतिहासिक शख्सियतों की तरह,करिकाला चोल के जीवन और शासनकाल से जुड़े विवरण ऐतिहासिक तथ्यों और पौराणिक तत्वों का मिश्रण हो सकते हैं। हालाँकि,वह दक्षिण भारतीय इतिहास की समृद्ध टेपेस्ट्री का एक अनिवार्य हिस्सा बना हुआ है और उसे सबसे महान चोल राजाओं में से एक के रूप में मनाया जाता है।.

5.शेनगणान

इसके बारे में ये प्रचलित था की यह पूर्व जन्म में मकड़ा था। इसने सम्पूर्ण देश में शैव मंदिरों का निर्माण कराया था। कल्लीवल्ली को पराजित कर बंदी बना लिया था। लेकिन चेर राजा के मित्र पोपगै ने चोल विजेता की प्रशंसा करके चेर राजा को मुक्त करा लिया।.i.संगम युगीन चोल शासक ने तीसरी चौथी सदी तक शासन किया तब पश्चात उरैयूर के चोल वंश का इतिहास अंधकार पूर्ण हो जाता है।9वी शताब्दी के मध्य विजयालय के नेतृत्व पुनः चोल सत्ता का उदय हुआ था।.

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