परिचय
हर्षवर्धन के शासन काल से ही कन्नौज पर नियंत्रण उत्तरी भारत का प्रभुत्व का प्रतीक माना गया। अरबों के आक्रमण के बाद प्रयद्वीप के अंतर्गत3महत्वपूर्ण शक्तियां थी।1.गुर्जर व राजपूताना के गुर्जर प्रतिहार।2.दक्कन के राष्ट्रकूट।3.बंगाल के पाल शासक।कन्नौज पर अपना-अपना शासन स्थापित करने को लेकर लगभग 200 साल तक इन तीन वंशजों के राजाओं में युद्ध चलता रहा। मगर अंत में जीत गुर्जर प्रतिहार की हुईं।.कन्नौज-गंगा व यमुना नदी के किनारे होने के कारण कन्नौज की भूमि अधिक उपजाऊ थी।जोकि की व्यापारिक दृष्टि के बहुत ही महत्वपुर्ण थी।.जिस कारण से यह संघर्ष का केंद्र रहा|ऐतिहासिक दृष्टि से विंध्या पर्वत माला व नर्मदा नदी उत्तर भारत को दक्षिण भारत में विभाजित करती थी।.
1.त्रिपक्षीय संघर्ष की शुरूआत प्रतिहार शासक वत्सराज ने कि।इस प्रकार यह श्रंखला प्रारंभ हुई।.वत्सराज संग आयुद्ध शासक इंद्रयुद्ध,वत्सराज संग पाल नरेश धर्मपाल(राष्ट्रकूट),वत्सराज संग नरेश धुव्र (राष्ट्रकूट)परन्तु नरेश ध्रुव अपनी विजय के कुछ समय बाद दक्षिण चले गए।.2.राष्ट्रकूट नरेश धुव्र की इस हार की हताशा के बाद राष्ट्रकूट टूट से गए थे। इस बात का लाभ उठा कर पाल नरेश(धर्मपाल)ने कन्नौज पर आक्रमण किया।.3.नरेश पाल की यह सफलता प्रतिहारो को असहनिय थी।इसके बाद युद्ध की शृंखला इस प्रकार प्रारम्भ हुई।.१.पाल शासक धर्मपाल संग वत्सराज पुत्र नागभट्ट दिवत्तिय(प्रतिहार)|.२.नागभट्ट दिवतिया संग गोविंद तृतीय(राष्ट्रकूट शासक),कुछ समय बाद फिर से प्रतिहार शासकों का राज वापिस आयाअंतिम युद्ध सिर्फ प्रतिहारो और राष्ट्रकूटवंश के बीच हुआ। 9वी शताब्दी तक प्रतिहार शासकों ने शासन किया।.
राजपूतों की उत्पत्ति
हर्षवर्धन की मृत्यु के पश्चात से लेकर 12 शताब्दी तक का काल उत्तर भारत के इतिहास में राजपूत काल के नाम से जाना जाता है। राजपूतों की उत्पत्ति को लेकर एक पटकथा उस समय काल के अनुसार बहुत प्रचलित थी। कथा अनुसार बताया जाता है की वशिष्ठ ऋषि के पास एक दिव्य शक्ति वाली गाय थी। जिसका नाम कामधेनु था। इस गाय को एक विश्वामित्र नामक ऋषि ने चुरा लिया।.इससे वशिष्ठ बहुत क्रोधित हुए। गाय प्राप्त करने के लिए उन्होंने आबू पर्वत राजस्थान में एक यज्ञ किया। उनके तप से ऐसे नायक उत्पन्न हुए। जिन्होंने विश्वामित्र ऋषि को हराकर वशिष्ठ जी को गाय पुन- सौप दी। इससे वशिष्ठ अति प्रसन्न हुए और नायकों को परमार यानी शत्रु का विनाश करने वाला कहा। इस प्रकार परमार वंश की स्थापना हुई।
इनके वंशजों में परमार,चौहान,चालुक्य और प्रतिहार थे।.नोट-दोस्तो इस कहानी में किसी भी प्रकार की सच्चाई नजर नहीं आती,लेकिन किताबो में लिखे होने की वजह ये हमारे लेख का विषय है। अगर आप इस पर विचार करेंगे तो दैनिक जीवन की वास्तविकता को समझने में आपको आसानी होगी यह परीक्षा ही नहीं उससे बढ़कर है।1.अगर कोई ऋषि लोभ,मोह,माया,को त्याग नही सकता तो वो ऋषि कैसे हो गया। यह हमारा इस कहानी के दोनो ऋषियों से संबंधित प्रशन है।.2.दोस्तो अग्नि को मैं भी पवित्र मानता हूं वे किसी भी विषय वस्तु के वास्तविक रूप को प्रदर्शित करती हैं। मगर किसी को उत्पन्न करने की क्षमता उनमें नहीं। यह बात प्रदर्शित करती है कि आज से ही नही प्राचीन काल से हमारी माताओं के साथ या स्त्रियों को उनके अधिकार से वंचित किया गया है।
गुजरात का गुर्जर प्रतिहार वंश
अग्निकुल के राजपूतों में सर्वाधिक प्रसिद्ध वंश था जो गुर्जरों की शाखा से संबंधित होने के कारण इतिहास में गुर्जर प्रतिहार कहा जाता है। इनकी उत्पत्ति गुजरात व दक्षिण पश्चिम (राजस्थान क्षेत्र) में मानी जाती है।.अभिलेखों के मतानुसार प्रतिहारो को भगवान राम के भाई लक्ष्मण के वंश का माना जाता है।.i.श्रीं राम के लिए प्रतिहार द्वारपाल का कार्य करता था। कन्नड़ कवि पप्प ने महिपाल को गुर्जर राजा कहा है।ii.पुलकेशित द्वितीय के एहोल लेख में गुर्जर जाति का उल्लेख सर्वप्रथम हुआ था। इस वंश की स्थापना हरिश्चंद्र नामक राजा ने की थी|.
iii.वत्सराज के समय से ही कन्नौज के लिए त्रिपक्षीय संघर्ष शुरू हुआ। वत्सराज को ही प्रतिहार सम्राज्य का वास्तविक संस्थापक कहा जाता था। वह स्म्राट की उपाधि धारण करने वाला प्रथम शासक था।.1.नागभट्ट प्रथम-इसे गुर्जर वंश का संस्थापक माना जाता है। इसके समय काल में अरबों ने भारत पर आक्रमण किया था। यह ग्वालियर के अभिलेख से ज्ञात हुआ। इसने अरबों की सेना को पराजित किया था। इसने अरबों से युद्ध किया और उन्हें सिंध से आगे नहीं बढ़ने दिया। इसने पश्चिमी भारत में एक शक्तिशाली राज्य की स्थापना की। ग्वालियर प्रशस्ति में उसे मलेक्छ का नाशक बताया गया है।.2.काकुस्थ-यह नागभट्ट प्रथम का भतीजा और उत्तराधिकार था।3.देवराज-काकुस्थ का अनुज और वैष्णव धर्म का अनुयायी था।.
4.वात्सराज-इसने साम्राज्य का विस्तार किया। इसने राजपुताना पर विजय हासिल करने के साथ-साथ कन्नौज पर भी विजय हासिल की।.इसके साथ इसने पाल शासक धर्म पाल को भी युद्ध में पराजित किया।और अंत में राष्टकुट शासक ध्रुव के हाथो यह पराजित हुआ।.5.नागभट्ट द्वितीय-नागभट्ट द्वितीय ने ही अपनी राजधानी उज्जैन से बदल कर कन्नौज स्थापित की। इसके साथ ही इसने आंध्र,सिंध,विर्दभ,कलिंग,मालवा,तरूषक,वत्स पर अधिकार किया। गोविंद तृतीय ने 802 ई.में इस प्रजाजित क्या।.
6.राजभद्र-नागभट्ट द्वितीय का कमजोर उत्तराधिकारी इसके समय में अनेक राज्य स्वतंत्र हो गए।.7.मिहिर भोज प्रथम-यह राज भद्र का पुत्र और उतराधिकारी भी था। जिसने वराह तथा प्रभास की उपाधियां भी धारण की। नोट-इसके समय काल में अरबी यात्री सुलेमान भारत आया था।इसने बुंदेलखंड,गुहिल,एवं कल्चुरी,दक्षिण राजपुताना,सौराष्ट्र पर विजय प्राप्त की।.8.महेंद्रपाल प्रथम-यह मिहिर भोज का पुत्र था और उतराधिकारी भी। इसने पालो को हराकर बंगाल पर अपना अधिकार स्थापित किया। और राष्टकुटो के राजा विजय राजशेखर को हराकर अपने दरबार में आश्रय दिया।.
9.मिहिर भोज द्वितीय-इसने मात्र 2 वर्षो तक ही शासन किया। इसका समय काल910-912 ई.तक रहा।.10.महिपाल प्रथम-इसके समय काल में बगदाद निवासी अल-मसूदी भारत आया था। इसने गुर्जर प्रतिहार को अलगुर्जर व राजा को बौरा कहा।.11.राज्यपाल-इसके समय काल में महमूद गजनवी का आक्रमण हुआ और राज्यपाल डर कर भाग गया तो क्रोधित होकर चंदेल शासक विद्याधर ने उसकी हत्या करवा दी। विद्याधर ने स्वयं को कन्नौज का शासक नियुक्त किया और महमूद गजनवी से वीरता के साथ लड़ा मगर अंत में पराजित हो गया।.12.त्रिलोचनपाल-यह गुर्जर प्रतिहार वंश का अंतिम शासक था।.
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