9b45ec62875741f6af1713a0dcce3009 Indian History: reveal the Past: गुप्तोत्तर काल के समकालीन शासक

यह ब्लॉग खोजें

लेबल

in

शनिवार, 2 सितंबर 2023

गुप्तोत्तर काल के समकालीन शासक

2019/01/blog-post

प्रस्तावना

गुप्तोत्तर काल,जिसे उत्तर-शास्त्रीय काल या प्रारंभिक मध्ययुगीन काल के रूप में भी जाना जाता है,प्राचीन और प्रारंभिक मध्ययुगीन भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण चरण को संदर्भित करता है जो गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद आया था।.गुप्त साम्राज्य,प्राचीन भारत के सबसे शानदार राजवंशों में से एक था,शास्त्रीय काल के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप के एक विशाल हिस्से पर शासन किया था। माना जाता है कि उत्तर-गुप्त काल आमतौर पर छठी शताब्दी ईस्वी के मध्य में शुरू हुआ और 12वीं शताब्दी ईस्वी में उत्तर भारत में इस्लामी शासकों के आगमन तक फैला रहा।.इस युग के दौरान,कई क्षेत्रीय साम्राज्य और राजवंश उभरे और भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न हिस्सों पर शासन किया। इन क्षेत्रीय शक्तियों में वर्धन,चालुक्य,पल्लव,राष्ट्रकूट,पाल साम्राज्य,चोल और कई अन्य शामिल थे।.

गुप्तोत्तर काल के समकालीन शासकों में से कुछ प्रमुख नाम निम्नलिखित हैं

1.पुलकेशी II
पुलकेशी II, जो 6वीं सदी में श्रीहर्ष के समय का शासक था,गुप्तवंश के प्रमुख राजा थे। उन्होंने वत्सराज राजवंश को पराजित किया और कानौज के प्रमुख शासक बने।.2.विक्रमादित्य-विक्रमादित्य,गुप्त वंश के शासक चंद्रगुप्त II के समकालीन थे। वे बहुत ही प्रशंसित और महान राजा थे,और उनके काल को"विक्रम संवत"के रूप में जाना जाता है।.3.यशोवर्मन:यशोवर्मन,गुप्त वंश के शासक विक्रमादित्य के पुत्र थे। उन्होंने अपने शासन के दौरान गुप्त साम्राज्य को मजबूती से संभाला और सुधारा।.4.धर्मपाल-पाल वंश के शासक थे और उनका शासन 9वीं सदी में था। वे भारतीय इतिहास में पाल वंश के प्रमुख शासकों में से एक थे और उन्होंने बौद्ध और हिन्दू धर्म का प्रसार किया।.5.राजेन्द्र चोल चोल वंश के शासक थे और उनका शासन 10वीं सदी में था। उन्होंने दक्षिण भारत में अपने साम्राज्य को विस्तारित किया और बौद्ध और जैन धर्म के प्रसार में मदद की।.6.मौखरी वंश-कन्नौज(हरीवर्मा,ईशान वर्मा,सर्ववर्मा)हुणो को पराजित कर पुर्वी भारत को उनके आक्रमण से बचााया।.7.पुष्यभूती वंश-थनेश्वर(पुष्यभूति,प्रभाकर वर्धन राज्यवर्धन,हर्ष वर्धन,)गुप्तो के उपरान्त उत्तर भारत में सबसे विशाल राज्य स्थापित किया।.8.परवर्ती गुप्त-मगध(माहा सेन गुप्त)मोखोरियो का राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी थे।.9.चंदगोड वंश-बंगाल (शशांक)थानेश्वर व कन्नौज शासकों में शत्रुता विद्यमान थी।वह बंगाल का यशस्वी शासक था। इसने अपनी सीमाओं का विस्तार उत्तर प्रदेश तक किया।.उसकी राजधानी कर्ण सुवर्ण थी। जिसकी पहचान रंगा माटी कस्बे से की जाती है। प्रारंभ में वह महासमंत था। स्वतंत्र शासक बनने पर उसने महराजाधिराज की उपाधि धारण कर ली।मौखरियो पर विजय हासिल करने के लिए लिए शशांक ने मालवा के राजा के साथ संधि कर ली। आगे चलकर मालवा के राजा देवगुप्त और ने मिलकर कन्नौज को जीतकर वहा अपना शासन स्थापित कर लिया।.

गुप्त्तोत्तर काल के समकालीन शासको द्वारा किये गये कार्य

गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद,भारतीय उपमहाद्वीप में विभिन्न क्षेत्रीय साम्राज्यों और साम्राज्य का उदय हुआ। इन क्षेत्रीय शक्तियों ने उपमहाद्वीप के राजनीतिक,सांस्कृतिक और आर्थिक परिदृश्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।.1.कला और साहित्य का संरक्षण राजनीतिक विखंडन के बावजूद, गुप्तोत्तर काल में क्षेत्रीय शासकों द्वारा कला,साहित्य और संस्कृति का संरक्षण जारी रहा। इस समय के दौरान वास्तुकला,मूर्तिकला और साहित्य का विकास हुआ,जिसमें शास्त्रीय गुप्त कला के तत्वों के साथ क्षेत्रीय शैलियों का मिश्रण हुआ।.2.बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म का प्रसार इस अवधि के दौरान बौद्ध धर्म एक महत्वपूर्ण धर्म बना रहा और कई बौद्ध मठ और शिक्षा केंद्र स्थापित किए गए। हिंदू धर्म भी एक प्रमुख धर्म बना रहा और इस युग के दौरान कई हिंदू मंदिरों का निर्माण किया गया।.3.समुद्री व्यापारगुप्त काल के बाद भारत और दक्षिण पूर्व एशिया के बीच व्यापक समुद्री व्यापार देखा गया,जिससे सांस्कृतिक आदान-प्रदान हुआ और क्षेत्र में भारतीय सांस्कृतिक और धार्मिक प्रभाव फैल गया।.4.पतन और आक्रमणगुप्तोत्तर काल के अंत में,उत्तर भारत को हूणों सहित विदेशी शक्तियों के आक्रमण का सामना करना पड़ा,जिससे क्षेत्र में राजनीतिक अस्थिरता पैदा हो गई।.

5.क्षेत्रीय सांस्कृतिक विविधता
इस युग में क्षेत्रीय सांस्कृतिक और कलात्मक शैलियों का उदय हुआ,प्रत्येक राज्य ने भारतीय विरासत की समृद्ध टेपेस्ट्री में योगदान दिया। गुप्तोत्तर काल ने भारतीय इतिहास के पाठ्यक्रम को आकार देने,बाद के मध्ययुगीन और प्रारंभिक आधुनिक काल के लिए मंच तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस युग के दौरान उभरे क्षेत्रीय राज्यों ने मध्ययुगीन भारत के विविध और जटिल सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य की नींव रखी।6.स्त्रियों की स्थिति गुप्तत्तोर काल में स्त्रियों में पहले की तुलना में गिरावट आ गई। इस काल में लड़की का आदर्श विवाह 8 वर्ष का माना जाता था। 8वर्ष की लड़की को गौरी तथा 10वर्ष की लड़की को कन्या कहा जाता था।नारद की स्मृति के टिकाकर में असहाय ने लिखा है कि स्त्रियों की अभि भावुकता इस लिए जरूरी है क्युकी शास्त्र अध्ययन के अभाव में उनकी बुद्धि विकसित नहीं होती थी।.वैसे गुप्त काल में सतिप्रथा का अभिलेखीय साक्ष्य मिलने लगता है। किन्तु 9वी शताब्दी से सती प्रथा अत्याधिक प्रचलित हो गई थी।.7.दास प्रथा गुप्तत्तोर काल में दास प्रथा में वृद्धि हुई। इस काल में राजा सामंत और गृहस्थ के अतिरिक्त बौद्ध मठो,वैष्णव,शैव,और शक्त मन्दिरों में भी दास रहते थे। गुप्त युग में नारद द्वारा कथित १५ प्रकार के दासो का उल्लेख विज्ञानेश्वर ने अपनी पुस्तक मिताक्षर में भी किया है।.जन ग्रंथ समरइच्छकहा तथा प्रबंध चिंतामणि में दास व्यापार की अनेक कथाएं है जिनसे पता चलता है कि दासो का व्यापार किया जाात था।.

8.व्यापार भारत के पूर्वी तथा दक्षिण मालाबार और कोरामंडल तट पर स्थित बंदरगाहों से चीन,दक्षिण पूर्वी एशिया आदि से व्यापार होता था।.बंगाल में तमरलीपित सबसे बड़ा बंदरगाह था। बाद में इसकी जगह सत्ताग्राम ने ले ली।.9.उद्योग भड़ौच के बने वस्त्र बहोत प्रसिद्ध थे जो वरोज नाम से प्रसिद्ध थे। खम्भात के वस्त्र भी बिकते थे। बुकरम के वस्त्र विदेश में निर्यात होते थे।मध्य का देश चुनरी के लिए प्रसिद्ध था कश्मीर में सफेद लिन न वस्त्र उद्योग होता था हेनसांग ने अपनी किताब मे इसके बारे मे लिखा है।.10.गांव के प्रकार भंडारवाद ग्रह यहां अंतर्जाजीय संख्या रहती थी। यहां के किसान अपने भूमि कर सीधे राजा को देते थे।.
ब्रम्हा देव गांव =ब्र्ह्मण को दान की हुई भूमि।
अग्रहार ग्राम=जिसमे केवल ब्रह्मण रहते हो।
देव दान=मंदिर अथवा धर्म स्थल को दान की गई भूमि।
शतक भूमि=जिस भूमि पर स्वयं का शिकार हो।
कृष्ट तथा परकृष्ट भूमि=स्वयं खेती की जाने वाली भूमि।

इसमें दो प्रकार के किसान आते थे।

1.कुटुंबी किसान-यह स्वतंत्र रूप से खेती करने वाले।.
2.सिरिन य त्रयधिसीरियन-जो बटाई पर खेती करते थे।.
11.वर्ण व्यवस्था हेन सांग के अनुसार उस समय वर्ण व्यवस्था प्रचलित थी। समाज में ब्रह्मण का सर्वश्रेष्ठ स्थान था।.जो ब्रह्मण अध्ययन-अध्यापन में पारंगत थे उन्हें क्षेत्रीय,आचार्य अथवा उपाध्याय कहा जाता था।.कायस्थगुप्तत्तोर काल में ओशनस्त स्मृति में ये एक जाती के रूप में दिखाई पड़ती है। जो न्यायअधिकरण में न्याय निर्णय लिखने का कार्य करते थे।.12.मैत्रक वल्लभी(भट्टटार्क,धर्मसेन्न चतुर्थ)"भट्टार्क" भारत में कुछ सांस्कृतिक और क्षेत्रीय संदर्भों में प्रयुक्त एक उपाधि या सम्मानसूचक शब्द है। तमिल ब्राह्मण समुदाय में, "भट्टार्क" (जिसे "भट्टर"या"भट्टारा" भी कहा जाता है)एक शब्द है जिसका इस्तेमाल उन पुजारियों या विद्वानों को संदर्भित करने के लिए किया जाता है जो धार्मिक अनुष्ठानों और शास्त्रों में पारंगत हैं। वे पारंपरिक रूप से मंदिर अनुष्ठान करने,समारोह आयोजित करने और पवित्र ग्रंथों का पाठ करने में शामिल होते हैं।."भट्टार्क"संस्कृत शब्द"भट्ट" से लिया गया है,जिसका आम तौर पर अर्थ विद्वान व्यक्ति,विद्वान या पुजारी होता है। तमिल ब्राह्मण परंपरा में,भट्टार्क समुदाय की धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने और आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उन्हें वैदिक शास्त्रों,अनुष्ठानों और परंपराओं का विशेष ज्ञान है और धार्मिक समारोहों के संचालन में उनकी विशेषज्ञता के लिए उनका सम्मान किया जाता है।.

MCQ सम्बंधित

१.गुप्तोत्तर काल के समकालिन शासक कौन थे?
परवर्ती गुप्त गुप्त वंश के शासक बुद्धगुप्त के शासनकाल में महत्वपूर्ण मैत्रक सरदार भट्टार्क थे। उन्होंने 475 ईसा पूर्व के आसपास सौराष्ट्र में मैत्रक वंश की स्थापना की और वल्लभी को अपनी राजधानी बनाया। मैत्रक वंश के प्रमुख शासकों में ध्रुवसेन प्रथम और ध्रुवसेन द्वितीय जैसे शक्तिशाली शासक थे।.

२.गुप्तोत्तर काल मे कौन-कौन से परिवर्तन हुये?
गुप्तोत्तर काल में समाज में वर्ण व्यवस्था में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ था। भूमिदान के फलस्वरूप,एक नई जाति कायस्थ की उत्पत्ति हुई जो समाज में कृषकों के रूप में आई और शूद्रों के रूपान्तरण का कार्य करती थी। वैश्यों के स्तर में भी शुद्र समुदाय की गिरावट दर्ज की गई,जिससे वर्ण व्यवस्था में परिवर्तन हुआ। इस प्रकार,जातियों के प्रगुणन ने चार वर्णों को प्रभावित किया और समाज में महत्वपूर्ण बदलाव लाया।.

३.गुप्तोत्तर काल में सती प्रथा को आत्महत्या कह कर आलोचना करने वाली व्यक्ति कौन थे?
गुप्तोत्तर काल में सती प्रथा को आत्महत्या कह कर आलोचना करने वाले व्यक्ति महाकवि'राघुवंश'के लेखक और कवि कालिदास थे। कालिदास ने अपने काव्य ग्रंथों में सती प्रथा को आत्महत्या के रूप में वर्णन किया और इसे समीक्षा की गई। उन्होंने इसके साथ ही महिलाओं के उच्च स्थान और जीवन में समाज में उनके अधिकारों की भी महत्वपूर्ण चर्चा की।.कालिदास के रचनाओं में से एक उनकी महाकाव्य'कुमारसम्भव'में सती प्रथा का विवेचन और आलोचना काफी प्रमुख है,जिसमें वे इस प्रथा के नकारात्मक पहलू को उजागर करते हैं।.

इन्हे भी देंखे

१.गुप्तोत्तर काल PDF
२.गुप्तोत्तर काल upsc

कोई टिप्पणी नहीं: