9b45ec62875741f6af1713a0dcce3009 Indian History: reveal the Past: कन्नौज का मौखरि वंश

सोमवार, 31 दिसंबर 2018

कन्नौज का मौखरि वंश

maukhari-dynasty

परिचय

मौखरी राजवंश एक प्राचीन भारतीय राजवंश था जिसने 6वीं और7वीं शताब्दी ईस्वी के दौरान वर्तमान उत्तर प्रदेश,भारत में कन्नौज क्षेत्र पर शासन किया था।वे कन्नौज के शुरुआती शासक राजवंशों में से एक थे और उन्होंने उस अवधि के दौरान उत्तरी भारत के राजनीतिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।मौखरी इंडो-आर्यन वंश के थे और क्षत्रिय कहलाने वाली योद्धा जाति से थे।वे गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद कन्नौज में सत्ता में आये,जिसका पहले इस क्षेत्र पर नियंत्रण था।.मौखरि वंश का संस्थापक ईशानवर्मन नामक शासक था,जिसने छठी शताब्दी के मध्य में अपना राज्य स्थापित किया था।ईशानवर्मन और उसके उत्तराधिकारियों के तहत,मौखरी राजवंश ने अपने प्रभाव का विस्तार किया और उत्तरी भारत के एक महत्वपूर्ण हिस्से को नियंत्रित किया। वे अपनी सैन्य कौशल के लिए जाने जाते थे और पड़ोसी राज्यों,जैसे बंगाल में गौड़ा साम्राज्य और बाद में नरसिम्हागुप्त बालादित्य के अधीन गुप्त साम्राज्य के साथ संघर्ष में सक्रिय रूप से शामिल थे।मौखरि वंश के सबसे प्रमुख शासकों में से एक हर्ष (हर्षवर्धन)थे,जो 7वीं शताब्दी की शुरुआत में सिंहासन पर बैठे।.
हर्ष एक प्रसिद्ध राजा और कला,साहित्य और संस्कृति का संरक्षक था।वह अपने नाटक "नागानंद"और अपने संस्कृत कवि मित्र बाणभट्ट के लिए प्रसिद्ध हैं,जिन्होंने साहित्यिक कृति "हर्षचरित्र"में उनके शासनकाल का वर्णन किया है।हर्ष का शासन मौखरि वंश की शक्ति के शिखर पर था।हालाँकि,उनकी मृत्यु के बाद,राजवंश को आंतरिक संघर्षों और बाहरी आक्रमणों का सामना करना पड़ा,जिससे इसका पतन हुआ।.मौखरि साम्राज्य अंतः उभरते हुए पाल वंश द्वारा समाहित कर लिया गया,जिसने कन्नौज और आसपास के क्षेत्रों पर नियंत्रण कर लिया।मौखरी राजवंश ने उत्तरी भारत के राजनीतिक और सांस्कृतिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।कन्नौज में उनके शासन ने क्षेत्र में बाद के शक्तिशाली राजवंशों,जैसे कि गुर्जर-प्रतिहार और राष्ट्रकूट की स्थापना के अग्रदूत के रूप में कार्य किया।.हरिवर्मा को ही मौखरी वंश का जनक माना जाता है हालाकि मुखर नामक आदि पुरुष इस वंश का निर्माण कर्ता माना जाता है।एक दांत कथा अनुसार इसके(मुखर)नाम से इस वंश का नाम मौखरी वंश पड़ा।लोगो का मानना है की कन्नौज का ही वंश मुख्य वंश है।लेकिन मुखर बिहार के गया जिले का निवासी था।इस प्रकार मौखरी वंश की अन्य शाखाएं राजस्थान तक फैली हुई है।लेकिन मुख्य शाखा के रूप में कन्नौज का मौखरी ही प्रचलित है।.1.मौखरी वंश के शुरुआती तीन राजाओं के (यज्ञवर्मा,शार्दुल वर्मा,अनंत वर्मा)का नाम मिलता है।2.इसी वंश मे राजा हर्षवर्धन की बहन राजश्री तथा प्रभाकर वर्मा की पुत्री का विवाह अवंतिवर्मन के पुत्र गृहवर्मा से हुआ था।

प्रमुख शासक

मौखरी वंश के अन्य सात राजाओं के नाम(हरिवर्मा,आदित्यवर्मा,आवंति वर्मा,ईशा वर्मन,सर्व वर्मन तथा अन्य दो के नाम)नालंदा अभिलेख से मिले है।जिनमें से सर्व वर्मन तथा ईशा वर्मन के महाराजा धीराज की उपाधि दी गई।.इसके साथ ही आवंति वर्मा,हरिवर्मा,को महाराज की उपाधि दी गई है।.
1.ईशावर्मन
मौखरी वंश का प्रथम शक्तिशाली राजा ईशावर्मन हुआ।उसने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की तथा अपने सिक्के चलाए। इस शासक का अभिलेख हरहृ बाराबंकी यू॰पी॰ से मिलता है।.हरहृ अभिलेख के अनुसार ईशावर्मन ने गौडो,अंध्रौ सुलको को पराजित किया।.सुधाकर पट्टू उध्याय के अनुसार ईशावर्मन द्वारा पराजित गौड़ का शासक गोपचंद्र का वंशज था।.आंध्र राजा विष्णु कुंडीन वंशी थे।.तथा सुलिक पश्चिमोत्तर सीमा के हुण थे।.ईशावर्मन मगध पर भी अपना शासन स्थापित किया।इसका प्रमाण महाशिवगुप्त के अभिलेख शिरपुर में मिलता है।जो हमें मध्य प्रदेश के रायपुर से मिलाहै।.चंद्रगुप्त प्रथम के पुत्र कुमारगुप्त ने ईशावर्मन को प्रयाग के निकट पराजित किया।(इसका प्रमाण नवादा के निकट बिहार से प्राप्त आफसढ अभिलेख से मिलता है।.
 
2.सर्ववर्मन(576-580)
मौखरी वंश का दूसरा महान शासक सर्व वर्मन था इन्हें भी महाराज धीराज की उपाधि से विभूषित किया गया इस शासक के अनेक सिक्के व असीरगढ़ से एक मोहर प्राप्ति हुई उसका समकालीन शासक उत्तर गुप्त राजा माहासेनगुप्त था।सर्व वर्मन ने उत्तर गुप्त शासक को पराजित कर मगध छोड़ने पर विवश कर दिया मगध पर मोखरियो की सत्ता स्थापित हो गई।(देेव बर्नक)व नालंदा अभिलेख मेंं सर्ववर्मन उल्लेख राजकीय उपाधि के साथ हुआ।इस से मगध पर उसके अधिकार की पुष्टि होती हैं। सर्व वर्मन ने हर्ष वर्धन के साथ मिलकर पश्चिमी सीमा पर गुणों को पराजित किया।.

3.अवंतीवर्मन(580-600)मौखरीयो का अंतिम शक्तिशाली शासक अवंती बर्मन था उसने विरासत में प्राप्त राज्य की सुरक्षा की थी।नोट-प्रभाकर बर्मन ने अपनी पुत्री राजश्री का विवाह आवंती वर्मन के पुत्रग्रह वर्मन से किया था।.२.इस संबंध में दोनों राज कुलो को एक दूसरे के निकट लाकर उत्तर भारतीय राजनीति में थानेश्चर व कन्या कुंज के राज्यो को सर्वाअधिक शक्तिशाली बना दिया।.इससे राजनीतिक प्रतिद्वंदिता जो पहले से चली आ रही थी और तीव्र हुई।नोट:इससे उत्तर गुप्त शासक मालवा तथा बंगााल शासक शशांक को संगठित होने अवसर दिया।इन दोनों राज्यो में मैत्री बढ़ी।इस समय ये दो गुट उभर कर सामने आए।

4.ग्रहवर्मन(647-664)
मोखरियो का अंतिम राजा ग्रहवर्मन था।.
शशांक ने तथा मालवा के उत्तर गुप्त शासक देवगुुुप्त ने कन्नोज पर आक्रमण करके ग्रह वर्मन की हत्या कर दी तथा पत्नी राज श्री को कैैद कर लिया। राज श्री निसंतान थी।.
5.राजश्री व हर्षवर्धन(606-647)
थनेशवर के राजा हर्ष वर्धन राज श्री का भाई था।जिसने 606से 647 तक कन्नौज का शासन संभाला।हर्षवर्द्धन,जिसे हर्ष के नाम से भी जाना जाता है,एक प्रमुख शासक था जिसने 606 से 647 ईस्वी तक उत्तरी भारत पर शासन किया।वह पुष्यभूति वंश के थे और उन्हें भारतीय इतिहास के सबसे महान राजाओं में से एक माना जाता है।हर्ष की राजधानी कन्नौज थी,जो उसके शासनकाल के दौरान एक महत्वपूर्ण राजनीतिक और सांस्कृतिक केंद्र थी।.अपने बड़े भाई राज्यवर्धन की हत्या के बाद हर्षवर्द्धन सत्ता में आये।वह अपने भाई की मौत का बदला लेने और अपने राज्य के क्षेत्र का विस्तार करने के मिशन पर निकल पड़ा। सैन्य विजय और रणनीतिक गठबंधनों के माध्यम से,हर्ष ने एक विशाल क्षेत्र पर अपना प्रभुत्व बढ़ाया,जिसमें वर्तमान उत्तर प्रदेश,बिहार,पंजाब,हरियाणा और हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्से शामिल थे।.हर्ष अपने प्रशासनिक कौशल और परोपकारी शासन के लिए जाना जाता था।उन्होंने कई कल्याणकारी उपाय लागू किए और व्यापार,कृषि और शिक्षा को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया। हर्ष कला,साहित्य और संस्कृति का संरक्षक था और स्वयं एक विद्वान और कवि था।.

उनके दरबार कवि बाणभट्ट और नाटककार बाने जैसे प्रसिद्ध बुद्धिजीवियों से सुशोभित था। हर्ष की उल्लेखनीय उपलब्धियों में से एक बौद्ध धर्म को बढ़ावा देने के उनके प्रयास थे।हालाँकि वह शुरू में शैव (भगवान शिव के उपासक)थे,लेकिन बाद में उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया और इसकी शिक्षाओं का प्रचार किया।हर्ष ने धार्मिक सभाओं का आयोजन किया,मठों का निर्माण किया और बौद्ध संस्थानों को सहायता प्रदान की।हालाँकि,उन्होंने धार्मिक सहिष्णुता बनाए रखी और विभिन्न धर्मों के विद्वानों को संरक्षण दिया। हर्षवर्द्धन के शासनकाल को उनके दरबारी कवि बाणभट्ट द्वारा रचित साहित्यिक कृति"हर्षचरित"(हर्ष का इतिहास)में अच्छी तरह से प्रलेखित किया गया है।.यह पाठ हर्ष केजीवन,उपलब्धियों और उस समय के सामाजिक और राजनीतिक परिवेश के बारे में बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।647ई.में हर्ष की मृत्यु के बाद,उसके द्वारा बनाया गया साम्राज्य आंतरिक संघर्षों और बाहरी आक्रमणों के कारण ढहने लगा। पुष्यभूति राजवंश के पतन के कारण उत्तरी भारत में क्षेत्रीय विखंडन का दौर शुरू हुआ।.जिसमें विभिन्न राज्यों में सत्ता के लिए होड़ मच गई।हालाँकि,हर्षवर्द्धन की विरासत उनके कला,साहित्य के संरक्षण और बौद्ध धर्म के प्रचार के माध्यम से कायम रही।उन्होंने भारतीय इतिहास पर अमिट प्रभाव छोड़ा और उनके शासनकाल को अक्सर सांस्कृतिक और बौद्धिक विकास का स्वर्ण युग माना जाता है।.

6.सुचन्द्रवर्मा(647-664)
अवंती बर्मन का पुुुत्र व ग्रह वर्मन छोटा भाई था।इसके प्रमाण के लिए रोहता गढ़ से एक मुद्रा मिली है।ग्रह वर्म मन की मौत के समय सुचंंद्र वर्मन छोटा था बाद में सुचंंद्र वर्मन कन्नोज का व मौआखरी का अंतिम शासक बना।.

4 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

Obviously it is such an informative article thanks for this information article please again make some good article on another
topics

Krishna ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Krishna ने कहा…

thanks

बेनामी ने कहा…

Kannoj ka Mukri Vansh per tippani

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