9b45ec62875741f6af1713a0dcce3009 Indian History: reveal the Past: थानेश्वर का पुष्यभूति

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सोमवार, 12 नवंबर 2018

थानेश्वर का पुष्यभूति

2018/11/indian-history

राजा हर्षवर्धन

राजा हर्षवर्धन पुष्यभूति वंश का सर्वाधिक प्रतापी राजा था। हर्षवर्धन का जन्म 591 ई० के लगभग हुआ। हर्षवर्धन ने अपनी राजधानी थानेशवर से कन्नौज बना ली थी। हर्षवर्धन ने अपने राज दरबार में कादंबरी और हर्ष चरित के रचयिता बाणभट्ट तथा सुभाषितवलि के रचयिता मयूर और चीनी विद्वान हेनसांग सी-यू-की के रचयिता को आश्रय प्रदान किया।.हर्षवर्धन की मृत्यु 647 ई० में हुई। निसंतान तथा अंतिम शासक होने के कारण इसकी मृत्यु के साथ ही पुष्यभूति वंश अथवा वर्धन वंश का अंत हुआ।

हर्षवर्धन का जीवन परिचय
वंश:पुष्यभूति वंश हेनसांग ने हर्ष को वैश्य क्षत्रिय जाति का बताया।.पिता:प्रभाकर वर्धन माता:यशोमती,उपनाम:शिलादित्य हर्ष उर्फ हर्षवर्धन,बड़ा भाई:राजवर्धन,बहन:राज श्रीममेरा भाई:भांडी यह हर्ष का प्रधान सचिव मंत्री था,मुद्राए: सोनीपत,नालंदा,१.सोनीपत:-इस मुद्रा पर शिव का वाहन नंदी बना हुआ था,२.नालंदा:-मुद्रा पर श्रीहर्ष लिखा हुआ था।
उपासक: हर्षवर्धन शिव के उपासक थे।

पुष्यभूति वंश वर्धन वंश का उदगम

इस वंश का संस्थापक पुष्यभूति था उसी के नाम पर यह वंश पुष्यभूति वंश के नाम से विख्यात हुआ। बाणभट्ट के हर्षचरित में इस वंश का वर्णन मिलता है वह गुप्त राजाओं का अधीनस्थ सामंत या अधिकारी था। गुप्त राजाओं की दुर्बलता का लाभ उठाकर उसने पूर्वी पंजाब हरियाणा में अपनी सत्ता स्थापित कर ली तथा थानेश्वर को अपनी राजधानी बनाया। वह शिव का भक्त था। उस पर भैरव आचार्य नामक शैव सन्यासी का प्रभाव था। इस वंश का प्रथम राजा नरवर्धनथा। 

हर्षवर्धन के वंशज कुछ इस प्रकार है

१.नरवर्धन २.राज्यवर्धन ३.आदित्य वर्धन ४.प्रभाकर वर्धन ५.राज्यवर्धन द्वितीय ,६.हर्षवर्धन, राजश्री ८.धारा सेन।.इस प्रकार हर्षवर्धन छठी पीढ़ी का राजा हुआ।.

प्रभाकर वर्धन(580-605ई०)
वर्धन वंश की शक्ति और प्रतिष्ठा का संस्थापक प्रभाकर वर्धन था। उस का अनुमानित समय छठी शताब्दी का अंतिम चरण माना गया है। हर्षचरित में बाणभट्ट ने लिखा कि वह एक सर्वभोम और शक्तिशाली राजा था।१.बांसखेड़ा अभिलेखों के अनुसार प्रभाकर वर्धन का यश चारों समुद्रों के पार तक फैला हुआ था।.
२.मालवा पर उसके प्रभाव की पुष्टि हर्षचरित से होती है।३.मौखरिया से सदृढ़ संबंध स्थापित करने के लिए उसने अपनी पुत्री राजश्री का विवाह ग्रहवर्मा उर्फ ग्रहवृमन से किया।
४.राजा की प्रिय रानी यशोमती थी। वह सूर्य के उपासक थे।.

राज्यवर्धन(605-666ई०) 
प्रभाकर वर्धन बूढ़ा हो चला था। इस दौरान हूणों ने उस पर आक्रमण कर दिया।प्रभाकर वर्धन बुढ़ा बीमार होने के कारण रण क्षेत्र में नहीं जा सकता था। तब उसने अपने जेष्ठ पुत्र राजवर्धन को भेजा। हूणों पर विजय प्राप्त करने के पश्चात उसे संदेश मिला कि उनके पिता प्रभाकर वर्धन का देहांत हो गया तथा उनकी बहन राजश्री को बंदी बना लिया गया है तथा उनके बहनोई ग्रह वर्मा की मालवाराज देवगुप्त ने हत्या कर दी।.

1.कन्नौज पर आक्रमण मालवाराज देवगुप्त तथा बंगाल के शासक शशांक ने किया था।
2.देवगुप्त और शशांक का अगला आक्रमण थानेश्वर पर होना।
3.राज्यवर्धन जो प्रभाकर वर्धन के देहांत के बाद धनेश्वर का राजा था।उसने अपनी बहन की रक्षा के लिए तथा कन्नौज की सुरक्षा के लिए राज्य का जिम्मा स्वयं पर लिया।
4.राजवर्धन ने देवगुप्त की सेना को पराजित किया लेकिन बंगाल के शासक शशांक ने धोखे से राजवर्धन की हत्या कर दी।

हर्षवर्धन(606-647)
राजवर्धन की मृत्यु के बाद हर्षवर्धन मात्र 16 वर्ष की अल्पायु में राजगद्दी पर बैठा।राज गद्दी पर बैठते ही हर्षवर्धन ने प्रतिज्ञा ली कि वह शशांक तथा देवगुप्त से बदला लेगा। वह अपनी बहन की सुरक्षा के लिए कन्नौज की तरफ बढ़ा। मार्ग में उसे राजा भास्कर वर्मा का दूत हंसबेग मिला। उसने हर्षवर्धन के सामने अपने राजा की मित्रता का प्रस्ताव रखा।.राजा हर्षवर्धन ने हंसबेग के प्रस्ताव को स्वीकार किया।.
आगे मार्ग में उसे यह सूचना मिली की राजश्री कैद से मुक्त होकर विंध्याचल चली गई है। अतः राजा भी विंध्याचल की ओर चल दिया। राजा हर्षवर्धन ने अपनी बहन राजश्री को उस समय खोज निकाला जब वह सती होने जा रही थी।.हर्षवर्धन राजश्री को लेकर कन्नौज पहुंचा।.वहां कन्नौज के मंत्रियों तथा राजश्री की सहमति के अनुसार हर्षवर्धन को वहां का राजा बना दिया गया।
तब राजा हर्षवर्धन ने अपनी राजधानी थानेश्वर को बदलकर कन्नौज बना दी।.पूर्णवृमन जो मगध का शासक था। उसने हर्षवर्धन से संधि की। इस प्रकार मगध के साथ नालंदा पर भी हर्ष का आधिपत्य स्थापित हुआ।.राजा हर्षवर्धन ने नालंदा के पास एक विहार भी बनवाया तथा महाविहार को एक गांव दान में दिया। वहां से हर्षवर्धन की एक मोहर भी मिलती है।

चिनी कवि हेनसांग के अनुसार

राजा हर्षवर्धन ने कश्मीर से गौतम बुद्ध का दांत लाकर कन्नौज के निकट एक संग्रहालय में स्थापित किया।.१.नेपाल में हर्ष संवत के प्रचलन के आधार पर कुछ विद्वान नेपाल पर भी हर्ष का आधिपत्य मानते हैं।२.हर्ष ने ओर्ड उत्तरी भारत तथा को्गोडा दक्षिणी उड़ीसा गंजाम जिला व कलिंग पर भी विजय प्राप्त की।३.इन विजयों के पश्चात है उत्तरी भारत का स्वामी बन गया।.उसने सकलोत्तरापथनाथ की उपाधि धारण की।.

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