परिचय
जिन्हें चंद्रगुप्त मौर्य या चंद्रगुप्त प्रथम के नाम से भी जाना जाता है, मौर्य साम्राज्य के संस्थापक थे, जो प्राचीन भारतीय इतिहास के सबसे बड़े और सबसे शक्तिशाली साम्राज्यों में से एक था। उन्होंने लगभग 322 ईसा पूर्व से 298 ईसा पूर्व तक शासन किया। चंद्रगुप्त मौर्य का प्रारंभिक जीवन किंवदंतियों में घिरा हुआ है,लेकिन ऐतिहासिक खातों के अनुसार, उनका जन्म एक साधारण पृष्ठभूमि में हुआ था और उन्हें एक योद्धा और रणनीतिकार के रूप में प्रशिक्षित किया गया था। वह प्रसिद्ध दार्शनिक चाणक्य (जिन्हें कौटिल्य या विष्णुगुप्त के नाम से भी जाना जाता है) के शिष्य बन गए, जिन्होंने बाद में चंद्रगुप्त के सत्ता में आने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।.चाणक्य के मार्गदर्शन में, चंद्रगुप्त मौर्य ने नंद साम्राज्य के खिलाफ विद्रोह किया, जिसने उत्तरी भारत के मगध क्षेत्र पर शासन किया था। कई सैन्य अभियानों के बाद, उन्होंने नंदों को सफलतापूर्वक उखाड़ फेंका और लगभग 322 ईसा पूर्व मौर्य साम्राज्य की स्थापना की। चंद्रगुप्त मौर्य का शासनकाल व्यापक विजय और क्षेत्रीय विस्तार द्वारा चिह्नित किया गया था।.उन्होंने एक विशाल साम्राज्य पर अपना शासन स्थापित किया जो पश्चिम में वर्तमान अफगानिस्तान और पाकिस्तान से लेकर पूर्व में बांग्लादेश और दक्षिणी भारत के कुछ हिस्सों तक फैला हुआ था। उनके साम्राज्य में भारतीय उपमहाद्वीप का एक महत्वपूर्ण हिस्सा शामिल था।.
चंद्रगुप्त मौर्य का सबसे उल्लेखनीय सैन्य अभियान यूनानी शासक सिकंदर महान के उत्तराधिकारी सेल्यूकस प्रथम निकेटर के विरुद्ध था। युद्ध सेल्यूसिया की संधि के साथ समाप्त हुआ, जिसने चंद्रगुप्त को सिंधु नदी के पूर्व के क्षेत्रों के शासक के रूप में मान्यता दी, जिसमें गांधार और पंजाब के क्षेत्र भी शामिल थे। इसने चंद्रगुप्त के लिए एक महत्वपूर्ण जीत दर्ज की और उसके साम्राज्य की शक्ति को मजबूत किया।.अपनी सैन्य उपलब्धियों के अलावा, चंद्रगुप्त मौर्य अपने प्रशासनिक सुधारों के लिए भी जाने जाते हैं। उन्होंने एक कुशल नौकरशाही प्रणाली की स्थापना की और अपने साम्राज्य को प्रांतों में विभाजित किया, प्रत्येक प्रांत एक स्थानीय प्रशासक द्वारा शासित था। .चंद्रगुप्त के शासनकाल में व्यापार, कृषि और बुनियादी ढांचे के विकास में भी प्रगति देखी गई। अपने शासन के बाद के वर्षों में, चंद्रगुप्त मौर्य ने अपना सिंहासन त्याग दिया और जैन धर्म को अपना लिया, एक धार्मिक परंपरा जो अहिंसा और तपस्या पर जोर देती है। उन्होंने अपना राज्य अपने पुत्र बिंदुसार को सौंप दिया और माना जाता है कि वह अपनी मृत्यु तक एक तपस्वी के रूप में रहे।.
चंद्रगुप्त मौर्य का सबसे उल्लेखनीय सैन्य अभियान यूनानी शासक सिकंदर महान के उत्तराधिकारी सेल्यूकस प्रथम निकेटर के विरुद्ध था। युद्ध सेल्यूसिया की संधि के साथ समाप्त हुआ, जिसने चंद्रगुप्त को सिंधु नदी के पूर्व के क्षेत्रों के शासक के रूप में मान्यता दी, जिसमें गांधार और पंजाब के क्षेत्र भी शामिल थे। इसने चंद्रगुप्त के लिए एक महत्वपूर्ण जीत दर्ज की और उसके साम्राज्य की शक्ति को मजबूत किया।.अपनी सैन्य उपलब्धियों के अलावा, चंद्रगुप्त मौर्य अपने प्रशासनिक सुधारों के लिए भी जाने जाते हैं। उन्होंने एक कुशल नौकरशाही प्रणाली की स्थापना की और अपने साम्राज्य को प्रांतों में विभाजित किया, प्रत्येक प्रांत एक स्थानीय प्रशासक द्वारा शासित था। .चंद्रगुप्त के शासनकाल में व्यापार, कृषि और बुनियादी ढांचे के विकास में भी प्रगति देखी गई। अपने शासन के बाद के वर्षों में, चंद्रगुप्त मौर्य ने अपना सिंहासन त्याग दिया और जैन धर्म को अपना लिया, एक धार्मिक परंपरा जो अहिंसा और तपस्या पर जोर देती है। उन्होंने अपना राज्य अपने पुत्र बिंदुसार को सौंप दिया और माना जाता है कि वह अपनी मृत्यु तक एक तपस्वी के रूप में रहे।.
मौर्य साम्राज्य के संस्थापक
के रूप में चंद्रगुप्त मौर्य की विरासत और उनके प्रशासनिक सुधारों ने उनके प्रसिद्ध पोते, अशोक महान के तहत साम्राज्य की बाद की महानता की नींव रखी। उनके शासनकाल ने भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय जोड़ा और प्राचीन भारत में मौर्य साम्राज्य को एक प्रमुख शक्ति के रूप में स्थापित किया।.बताया जाता है कि गुप्त वंश की नीव रखने वाले शासक का नाम श्री गुप्त था। इन्होंने लगभग 240 से 280 वर्षो तक शासन किया। गुप्त वंश का उदय कौशांबी में प्रयाग के निकट लगभग तीसरी शताब्दी में होना प्रारम्भ हुआ।. इनका पहला शक्तिशाली सम्राट चन्द्र गुप्त मौर्य बना।.श्री गुप्त का उत्तराधिकारी घटोत्कच था जिसने 280 से 320 ई० तक राज किया।.गुप्त वंश का प्रथम सम्राट चंद्रगुप्त प्रथम 320ई० गद्दी पर बैठा । इसने( लिक्षवी )की राजकुमारी (कुमार देवी)से विवाह किया इसकी दूसरी पत्नी का नाम (हेलेना)था जो सिकंदर के उत्तराधिकारी (सेल्यूकस)की पुत्री थी।.कुछ अंधविश्वास के अनुसार चंद्रगुप्त को शुद्र वंश का माना जाता है।
विष्णु पुराण के रचयिता श्रीधर स्वामी की मान्यता के अनुसार चंद्र गुप्त मौर्य का जन्म नंद राजा की पत्नी मोरा से हुआ था। मुरा से उत्पन्न होने के कारण चंद्रगुप्त मौर्य कहलाया। नंद वंश के लोग शुद्र होते है।
अन्य ब्राह्मण साहित्य जैसे मुद्राराक्षस, विष्णु पुराण के अनुसार चंद्रगुप्त शुद्र वंश के हैं।.
राज व्यवस्था चंद्रगुप्त के प्रधानमंत्री कौटिल्य थे।.राजधानी पाटलिपुत्र थी।राजकीय चिन्ह मयूर था भाषा पाली थी।शिक्षा का केंद्र तक्षशिला था।धर्म वैष्णव धर्म था।.(मेगस्थनीज) सेल्यूकस निकेटर का राजदूत था।.चंद्रगुप्त के दरबार में रहता था मेगस्थनीज ने इंडिका नामक पुस्तक चंद्रगुप्त पर लिखी। जिसमें उसनेेे राजा के जनता के सामने आने पर मनाए जानेेे वाले महोत्सव का वर्णन किया।.उसने लिखा कि राजा को सोनेे की पालकी में लाया जाता था, उनके अंगरक्षक सोने और चांदी से अलंकृत हाथियोंं पर सवार रहते थे। कुछ अंगरक्षक पेड़ों को लेकर चलते थे इन पेड़ों पर प्रशिक्षित तोतों का झुंड रहता था।.जो सम्राट के सिर के चारों तरफ चक्कर लगता रहता था।
राजा समानत: हथियारबंद महिलाओं से घिरा होता था। भोजन करने से पहले राजा के भोजन को खास गुप्तचरों द्वारा चखा जाता था।. एक ही कमरे में राजा प्रतिदिन नहीं सोता था,हर दिन सोने के कमरे परवर्तित होते रहते थे।.पाटलिपुत्र विशाल दीवारों से घिरा हुआ था। राजा ने अपना आखरी समय श्रवण बेगोला जगह पर बिताया था। राजा के महल में 570 खंबे 64 निकासी द्वार बनाए गए थे। इनके समय काल में 3,4 मंजिला इमारतों ईट या लकड़ी की बनी होती थी।राजा का महल भी लकड़ी का बना था। इस पत्थर की नक्काशी से अलंकृत किया गया था। राजा का महल चारो तरफ से पक्षियों के रैन बसेरे से घिरा हुआ था। मौत के समय वह व्रत में था।
बिंदुसार चंद्रगुप्त और दुध्ररा का पुत्र था ।बिंदुसार को ही हम समुद्रगुप्त के नाम सेे भी जानते हैं।भारत के नेपोलियन के रूप में बिंदुसार को विभूषित किया गया जब इन्होंने दक्षिणाव्रत के 12 और आर्यव्रत के 9 शासक राजाओं को पराजित किया। इनके बात समुद्रगुप्त का नाम सामने आता है प्रशस्ति लेख की रचना करने वाले हरिशेषण इन्ही में दरबारी कवि थे।.समुद्रगुप्त का उत्तराधिकारी चंद्रागुप्त द्वितीय हुआ।उसने शकों पर विजय प्राप्त करने कि खुशी में चांंदी के सिक्के जारी किए। चंद्रगुप्त द्वितीय का उत्तराधिकारी कुमारगुप्त उर्फ गोविंद गुप्त हुआ। नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना कुमारगुप्त ने कि।. कुमारगुप्त का उत्तराधिकारी स्कंद गुप्त हुआ। इसनेेे सौराष्ट्र का गवर्नर प्रणदत्त को नियुक्त किया। अंतिम गुप्त शासक विष्णु गुप्त था।.
चंद्रगुप्त का उत्तराधिकारी
बिंदुसार(अमित्रघात, सिंहसेन) थाबिंदुसार चंद्रगुप्त और दुध्ररा का पुत्र था ।बिंदुसार को ही हम समुद्रगुप्त के नाम सेे भी जानते हैं।भारत के नेपोलियन के रूप में बिंदुसार को विभूषित किया गया जब इन्होंने दक्षिणाव्रत के 12 और आर्यव्रत के 9 शासक राजाओं को पराजित किया। इनके बात समुद्रगुप्त का नाम सामने आता है प्रशस्ति लेख की रचना करने वाले हरिशेषण इन्ही में दरबारी कवि थे।.समुद्रगुप्त का उत्तराधिकारी चंद्रागुप्त द्वितीय हुआ।उसने शकों पर विजय प्राप्त करने कि खुशी में चांंदी के सिक्के जारी किए। चंद्रगुप्त द्वितीय का उत्तराधिकारी कुमारगुप्त उर्फ गोविंद गुप्त हुआ। नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना कुमारगुप्त ने कि।. कुमारगुप्त का उत्तराधिकारी स्कंद गुप्त हुआ। इसनेेे सौराष्ट्र का गवर्नर प्रणदत्त को नियुक्त किया। अंतिम गुप्त शासक विष्णु गुप्त था।.
गुप्त साम्राज्य की राजव्यवस्था
१.गुप्त वंश में पुलिस का मुख्य अधिकारी दंडी पार्षक कहलाता था।
२.पुलिस विभाग के साधारन कर्मचारियों को चाट या भाट कहा जाता था।
३.शासन की सबसे छोटी इकाई ग्राम थी।
४.ग्राम का प्रशासन ग्राम सभा द्वारा संचालित होता था।
५.ग्राम सभा का मुख्य ग्रामीक कहलाता था।
६.ग्राम समूहों की छोटी इकाई को पेठ कहते थे।
७.भू राजस्व का कुल उत्पादन का 1/4 भाग से 1/6 भाग हुआ करता था।
९.सिंचाई के लिए रहट य घंटी यंत्र का प्रयोग किया जाता था।.
१०.श्रेणी के प्रधान को जेष्ठ कहा जाता था।
११.संस्कृत गुप्त राजाओं की शासकीय भाषा थी।
१२.गुप्तकाल में चांदी के सिक्कों को रूपक कहा जाता था।
१३.मंदिर बनाने की कला का उद्गम इसी काल से हुआ।
१४.पहली बार किसी स्त्री के सती होने का प्रमाण भानु गुप्त के (एरण) अभिलेख से मिलता है।(जिसमें किसी भोजराज की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी के सती होने का उल्लेख मिलता है।)
१५.वेश्यावृति को गोणक का कहते थे वृद्धा वेश्या को कुटनी कहते थे।.
१६.अजंता की 29 गुफाओं में केवल 6 शेष इनमे में 16 और 17 नंबर की गुप्त कालीन गुफा हैं।
१७.17 नंबर की गुफा को चित्रशाला कहा जाता है।
१८.आर्यभट्ट गुप्त कालीन थे जिन्होंने यह सबसे पहले प्रमाणित किया कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है
१९.गुप्तकालीन कालिदास की अभिज्ञान शाकुंतलम् प्रथम भारतीय रचना है जिसका अनुवाद यूरोपीय भाषा में है।.
२.पुलिस विभाग के साधारन कर्मचारियों को चाट या भाट कहा जाता था।
३.शासन की सबसे छोटी इकाई ग्राम थी।
४.ग्राम का प्रशासन ग्राम सभा द्वारा संचालित होता था।
५.ग्राम सभा का मुख्य ग्रामीक कहलाता था।
६.ग्राम समूहों की छोटी इकाई को पेठ कहते थे।
७.भू राजस्व का कुल उत्पादन का 1/4 भाग से 1/6 भाग हुआ करता था।
९.सिंचाई के लिए रहट य घंटी यंत्र का प्रयोग किया जाता था।.
१०.श्रेणी के प्रधान को जेष्ठ कहा जाता था।
११.संस्कृत गुप्त राजाओं की शासकीय भाषा थी।
१२.गुप्तकाल में चांदी के सिक्कों को रूपक कहा जाता था।
१३.मंदिर बनाने की कला का उद्गम इसी काल से हुआ।
१४.पहली बार किसी स्त्री के सती होने का प्रमाण भानु गुप्त के (एरण) अभिलेख से मिलता है।(जिसमें किसी भोजराज की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी के सती होने का उल्लेख मिलता है।)
१५.वेश्यावृति को गोणक का कहते थे वृद्धा वेश्या को कुटनी कहते थे।.
१६.अजंता की 29 गुफाओं में केवल 6 शेष इनमे में 16 और 17 नंबर की गुप्त कालीन गुफा हैं।
१७.17 नंबर की गुफा को चित्रशाला कहा जाता है।
१८.आर्यभट्ट गुप्त कालीन थे जिन्होंने यह सबसे पहले प्रमाणित किया कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है
१९.गुप्तकालीन कालिदास की अभिज्ञान शाकुंतलम् प्रथम भारतीय रचना है जिसका अनुवाद यूरोपीय भाषा में है।.
1 टिप्पणी:
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