9b45ec62875741f6af1713a0dcce3009 Indian History: reveal the Past

यह ब्लॉग खोजें

लेबल

in

गुरुवार, 26 जून 2025

जलीयांवाला बाग

 Jallianwala bagh

प्रस्तावना

प्रस्तुत लेख में हम जलीयांवाला बाग में हुए हत्याकांड के पिछे के मुख्य कारण के बारे में चर्चा करेंगे।. इसके साथ ही घटना को अंजान दिये जाने के लिए चली गयी कूटनीति के बारे में भी चर्चा करेंगे। घटना के मुख्य पात्रों तथा मरने वालों कि संख्या पर भी विचार करेंगे क्योंकि सरकारी रिकार्ड में मरने वाले कि संख्या कम दिखाई गयी थी जबकि अस्पताल के रिकार्ड को हिसाब से संख्या अलग थी जो कि इस घटना का महत्वपूर्ण पहलू है। इसके साथ ही क्रांतिकारी नेता कृपाल सिंह तथा ब्रिटिश पार्लीयामेन्ट की वायसराय काउन्सिल के इकलौते भारतीय मेम्बर C. Sankaran Nair बारे में चर्चा करेंगे।.

घटना की मुख्य जड़े

1857 की क्रांति के बाद 1914 में पहला विश्व युद्ध हुआ जिसमें ब्रिटिश भारतीय मूल के सैनिकों कि कमी थी जिसके चलते ब्रिटिश सरकार ने वादा किया की अगर आप हमारी तरफ से युद्ध में भाग लेते है तो युद्ध समाप्ति के बाद हम भारत को आज़ादी देंगे। जिसके चलते लगभग 5 लाख भारतीय मूल के सैनिक सेना में भर्ती हुए और युद्ध में झौंक दिये गए। जबकि उनका युद्ध से कोई लेना देना नहीं था। युद्ध समाप्त हुआ समझौते के मुताबिक भारतीयों को आज़ादी मिलनी चाहिए थी, मगर सरकार अपने वादों से मुकर गयी। परिणास्वरुप देश में एक बार फिर विरोध प्रदर्शन होना प्रारम्भ हुआ मगर अब की बार विरोध प्रदर्शन भारतीय मूल के सैनिकों द्वारा किया गया, जिनके मुख्य नेता कृपाल सिंह थे जो कि स्वयं युद्ध में शामिल हुए थै उनके अलावा भी कयी अन्य क्रांतिकारी नेता जैसे कन्हैया लाल , खुदिराम सिंह, बरीन्दर कुमार के नाम समाने आते है।.

कृपाल सिंह

वह ब्रिटिश भारतीय सैनिक तथा बाद में स्वतंत्रता सेनानी और शिक्षक बने। उन्हीं को चलते 1915 की गदर साजिश विफल रही क्योंकि उन्होंने ही पंजाब सीआईडी को गदर साजिश के  बारे में जानकारी दी थी। मगर प्रथम विश्व युद्ध बाद अंग्रेज़ों के प्रति उनकी निष्ठा बदल गयी क्योंकि वे अपने वादों के पक्के नहीं थे। उनका जन्म 1925 में हुआ था वे पेशे से अपने शुरूआती समय में कश्मीर के बारामूला के सिक्ख स्वतंत्रता सेनानी और शिक्षक थे। कश्मीर में आज भी पंजाबी भाषा में श्रेष्ठ आने वाले छात्र को उनके नाम पर एक वार्षिक पुरस्कार दिया जाता है।. अतः फौज से इस्तीफा देना के बाद उन्होंने अपना स्कूल कार्य फिर से प्रारम्भ किया और जगह जगह विरोध प्रदर्शन किया।

रौलेट एक्ट

इसी बीच रौलेट एक्ट पास किया जाता है जिसकी नितीयां भारतीय जनता द्वारा मान्य नहीं थी। इसके कुछ नियम इस प्रकार थे ।.1 सरकार किसी को भी बिना कारण बताये हिरासत में ले सकती थी 2. किसी भी भारतीय को बिना मुकदमा चलाये गिरफ्तार करने तथा दो साल तक जेल में रखने का अधिकार पुलिस को मिल गया।.2.बिना जूरी के मुकदमे चलाये जा सकते थे। 4. पुलिस को बिना वारंट के तलाशी और गिरफ्तारी के असीमित अधिकार थे। इसी एक्ट के खिलाफ जलियांवाले बाग में लोगों कि भीड़ जमा हुयी थी मगर जनरल डायर में उन्हें आतंकवादी घोषित कर गोली मारने का आदेश दे दिया।

डायर ने ऐसा क्यों किया

1. 6 अप्रैल 1919 को पुरे भारत में हड़ताल की गई जिसमें आम जन के साथ ही सरकारी कार्य कर्ताओं ने भी भाग लिया आन्दोलन का संचालन गांधी जी ने किया था।
2.ब्रिटीश सरकार को डर था कि अगर सरकार द्वारा कोई कार्य नहीं किया गया तो ये देश विरोधी नारे और तेज हो जायेंगे अतः सरकार द्वारा वाहवाही लूटने के चक्कर में  डायर ने प्लान बनाया। 9 अप्रैल 1919 को रामनवमी का त्यौहार हिन्दू और मुस्लमान वर्ग के लोगों ने मिल  जूलकर मनाया जिससे यह कदन उठाया गया था
3.क्योंकि डायर जानता था कि भारतीय सैनिक अपने लोगों पर गोली नहीं चलायेंगे।10 अप्रैल 1919 को गौरखा और बलूच रेजीमेन्ट को एमरजेंसी नोटिस भेज बुलाया गया।. 
4.जलियांवाले बाग में ज्यादा से ज्यादा लोग इकट्ठा करने के लिए 13 अप्रैल 1919 को पंजाब के क्षेत्र में सुबह के समय  की अनाउंसमेन्ट  गयी जिसमे बताया गया कि महशुर क्रांतिकारी नेता कन्हया लाल  आज शाम चार बचे जलियांवाले बाग में रोलेट एक्ट के खिलाफ भाषण देंगे।  ।

डायर नोट गिल्टी कैसे साबित हुआ

जलियांवाले हत्या कांड के बाद लोगों को आतंकवादी घोषित किया गया, घटना के मुख्य पहलुओं को छुपाया गया जैसे मरने वालों कि संख्या कितनी थी , घटना को दौरान कितने गैर कानूनी हथियार बरमाद किये गये, मुआवजे के रुप में 25 -25 रुपये दिये गये अतः केस के दौरान डायर का जुर्म साबित नहीं हो पाया और उसे बरी कर दिया गया।

सी शंकरन नायर

इन्होंने इस केस को दोबारा लड़ा और जनरल डायर को उसके पद से बर्खास्त कराने तथा भारतीयों को न्याय दिलाने में अहम भूमिका निभाई। इस घटना के दौरान वे ब्रिटिश वायसराय काउन्सिल के एक इकलौते भारतीय मेम्बर थे नारायण ने अपने पद से इस्तिफा दिया और इस केस को पढ़ने के बाद डायर के खिलाफ के खिलाफ केस लड़ने कि  याचिका डाली। इनका जन्म 11 जूलाई 1857 को केरल के मालाबार क्षेत्र में हुआ था 1897 में वे कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष बने । इन्होंने अपनी लॅा की डिग्री मद्रास लॅा कालेज से ली थी तथा 1880 में मद्रास हाईकोर्ट में वकील के रुप में अपना करियर प्रारम्भ किया। इनके बारे में एक बात बहुत प्रसिद्ध थी कि ये कभी कोई केस नहीं हारे।
 

जांच के दौरान इन्हे क्या मिला 

1. जांच में देखा कि 13 अप्रैस 1919 में हुई फायरिंग में 2332 बुलेट का नुकसान हुआ जिसमें कुल 1650 आतंकवादी मारे गये मगर अस्पताल रिकार्ड में मरने वालों कि संख्या 10312 थी।
2. इतने बड़े हत्याकांड में एक भी ब्रिटीश सैनिक नहीं मारा गया था।
3. 13 अप्रैल को सरकार के अनुसार पजांब में कर्फ्यू  लगा था मगर जलियांवाले बाग के निकट हरमेन्दर साहब के इलाके में पुलिस चौंकि के सामने से जब हजारों कि संख्या में लोग बाग की तरफ चले तो उन्हें किसी भी प्रकार से न तो रोका गया न चेतावनी दी गयी। तथ्यों कि बारिकी जानकारी निकालने पर पता चला कि यह घटना एक प्रि प्लान मर्डर था निहत्थे भारतीय नागरिकों की जिनमें 5 वर्ष के बच्चों से लेकर, महिलाओं और पुरुष जन संगठन शामिल था जिन्हें ब्रिटिश सेना द्वारा अतकंवादी बना दिया गया किया गया ।.