प्रस्तावना
प्रस्तुत लेख में हम कोमागाटा मारु घटना के बारे मे चर्चा करेंगे इसके साथ हि घटना के मुख्य पात्र एवं गदर आंदोलन से इस घटना के सम्बन्ध के बारे एवं गदर आन्दोलन के मुख्य पात्रों के बारे मे चर्चा करेंगे।. इसके साथ हि हम देखेंगे कि सम्पूर्ण भारत पर इस घटना का क्या असर पड़ा।.
कोमागाटा मारु घटना
इस घटना का जिक्र हमें जेम्स कंपबेल की किताब भारत में राजनीतिक संन्धि से मिलता है।यह बिस्वी सदी की उन घटनाओं में से एक थी जिनमें भारतीय मूल के लोगों को अमेरिका और कनाडा में प्रवेश वर्जित था।.12 मई 2008 में कनाडा सरकार ने 1914 के कोमागाटा मारु का घटना के लिए भारतीयों से क्षमा मांगी और स्वीकार किया कि 1914 में Exalusion lows यानि नस्लीय आव्रजन के चलते भारतियों के साथ भेदभाव हुआ था।.इससे पहले कनाडा के बहुसंस्कृति विभाग के मुख्य सचिव ने कनाड़ा में रहने वाले भारतीय मूल के लोगो के समक्ष अपनी प्रतिबध्दता दिखाते हुए सचिव जेसन केन्नी ने बयान दिया था कि सरकार संसद में इसके लिए एक क्षमा प्रस्ताव प्रस्तुत करेगी।.बयान के दौरान उन्होने यह भी कहा था कि घटना कि याद में एक स्मारक स्थल बनवाने के भारतीयों को कोष भी प्रदान करेगी।.इसके बाद 20 मई 2016 में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन टूडों ने कनाड़ा में रह रही भारतीय मूल के 4लाख से ज्यादा पोपुलेशन से अपनी संसद में अधिकारिक रुप में माफी मांगी।.इस घटना कि याद में भारत सरकार ने 2014 में 5 रुपये का सिक्का जारी किया था।.
कोमागाटा मारु एक जापानी जहाज़ था। यह एक स्टिम इंजन था जो कोयला ढोने का कार्य करता था। जिसे हांगकांग में रहने वाले भारतीय बाबा गुरदिन सिंह ने भाड़े पर लिया था। ताकि वह अपने भारतीय साथियों के कनाडा ले जा सके।.क्योंकि उस समय भारत में अंग्रेजो का शासन चल रहा था अतः भारत में रहने के लिए अंग्रेजो कि शोषण कारी नितीयों का समाना करना पड़ता था जिसके चलते बाबा गुरुमित सिंह ने यह कदम उठाया था।.अत:जहाज 376 लोगों को लेकर 4 अप्रैल 1914 को वेकूंवर कानाडा तट पर पहुंचा था। इस जहाज़ में 337 सिक्ख,277 मुसलमान , 12 हिन्दू और कुछ ब्रिटिशस भी थे।.कानाडा के वैंकूवर तट पर Exalusion laws का हवाला देकर भारतियों के कोलोम्बया में प्रवेश की अनुमति नही दी गयी।.मात्र 24 लोग तट पर उतरने दिया गया। और बाकि लोगों को वापिस भेज दिया गया।.अतः जहाज में मौजूद सभी यात्रीयों को 2 माहिनों तक भुखे प्यासे उस जहाज में बिताना पड़ा। 29 सिंतम्बर 1914 को जहाज़ वापिस कलकत्ता बजबज तट पर आया। तट पर ही ब्रिटिश सिपाहियों के साथ यात्रीयों की भंयकर झड़प हुई। दरअसल ब्रिटीश सिपाही गदर समुह के नेताओं को गिरफ्तार करना चाहते थे जिसके परिणाम स्वरुप झडप प्रारम्भ हुई।.अतः झड़प के दौरान ब्रिटीश सिपाहियों ने निहत्थे भारतीयों गोलीयां चलाई जिसके चलते सरकारी अभिलेखों के अनुसार 26 लोगों कि मौत हो गई,मूल गवाहों के अनुसार लगभग 75 से भी अधिक लोग घायल हुए।.
कटिन्युअस पैसेज एक्ट
1908 में कनाडा में लिबरल पार्टी की सरकार बनी थी जिसने प्रवासी नियमों में सुधार करके भारतीयों के लिए कनाडा का दरवाजा खोल दिया।. यह कानून कनाडा सरकार ने अफ्रीका एवं एशिया के लोगों को कनाडा में जबरन घूसने से रोकने के लिए बनाया था।. कानून के नियम अनुसार यदि कोई जहाज़ कनाडा सरकार के अदेश पर बिना रुके कनाडा तट पर पहुंचता है तो उन्हे कनाडा में घुसने की अनुमति नही दी जायेगी।.अतः इस कानून का हवाला देकर भारतीयों को कनाडा में प्रवेश नही दिया गया।.
आव्रजन नियंत्रण कानून
1908 के समय काल के दौरान कनाडा बड़ी संख्या में आप्रवासियों को स्वीकार कर रहा था। अतः कनाडा सरकार को अप्रवासियों के आगमन से किसी प्रकार का खतरा न हो इसके लिए कनाडा सरकार ने आव्रजन नियंत्रण कानून पारित किया ताकि विद्रोहियों को पहाचान ने में आसानी हो सके।.यह कानून उन लोगो को प्रभावित करता था जो अपने जन्म व नागरिकता के देश को छोड़कर कनाडा आये गये थे।.इसके साथ मूल देश से खरीदे गये टिकट के माध्यम से कनेडा नही आये है य बिना टिकट यात्रा करके आये है।.इन सब के बावजूद भी 1913 में 4 लाख से अधिक प्रवासी कनाडा पहुंचे जिसके चलते कनाडा में नस्ल संबन्धित भेदभाव उभरने लगा क्योंकि कई सम्प्रदाय के लोगो का आगमल हुआ था।.
नसलिय भेदभाव की मिसाल कामगाटा मारु
कामागाटा मारु की घटना होने से पहले ही कनाडा में 1913 में 4 लाख प्रवासियों के कनाडा आगमन ने नसलिय भेदभाव को जन्म दिया।.क्योंकि अचानक एक स्थान पर यानि कनाडा में विभिन्न जाति एवं सम्प्रदाय को लोग एक साथ इकट्ठा हो गये थे।.अतः जिस सम्प्रदाय के लोगो कि संख्या ज्यादा थी वे लोगो का शोषण किया करते थे।.दूसरी तरफ भारतीय विदेशी शासन से पीडित थे जिसके चलते उन्होने कनाडी की तरफ प्रवासन किया। इस कार्य में भारतीयों की मदत कनाडा मूल के निवसी भारतीय गुरदित सिंह ने की।. 1906 के समय काल में वे इंडो-कैनेडियन इमिग्रेशन के अग्रदूत और एक सिंगापुर व्यवसायी थे।.
गुरदित सिंह संधू
इनका जन्म 25 अगस्त 1860 में पंजाब में हुआ था और 24 जुलाई 18564 पंजाब में ही 93 वर्ष कि उम्र में दिहांत हुआ था।.गुरुदित सिंह का विचार था कि स्वतंत्र देशों के नागरिकों से मिलने पर भारतीयों में स्वतंत्रता की भावना का संचार होगा।.जिसके चलते भारतीयों में स्वतंत्रता कि भावना जाग्रत होगी और वे अपने अधिकारों और अपने साथ हो रहे शोषण के प्रति आवाज उठायेंगे।.अतः उन्होने भारतीयों को कलकत्ता से कनाडा ले जाने के लिए जापानी जहाज़ कामागाटा मारु को किराये पर लिया।.उनका उद्देश्य मात्र अपने भारतीय साथियों की मद करना था।.अतः जहाज़ 1913 में ही रवाना होना था मगर लेकिन गुरदित सिंह सांधु का अवैध यात्रा के टिकट बेचने के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया गया।.5 से 6 महीने की सज़ा के बाद गवर्नर फ्रांसिस हेनरी के आदेश पर उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया।.इस प्रकार 14 अप्रैल 1914 को कलकत्ता से रवाना हुआ योको हामा पहुंचा और 3 मई को बरार्ड इनलेट पहुंच गया जो कि वैंकूवर के लगभग पास में ही था।.जहाज में सवार यात्रियों में सिक्ख भाई जगत सिंह और भगत सिंह भी शामिल थे जिनमें जगत सिंह भारतीय-अमरिकी सिक्ख लेखक एवं अध्यात्मिक विज्ञान के प्रोफेसर थे इसके साथ हि क्रांतिकारी बक्कतुल्लाह और भगवान सिंह ज्ञान आदि के साथ हि गुरदित सिंह संधू तथा उनकी परिवार के सदस्य उनका बेटा,बलवंत सिंह,बाबा पूरन सिंह,दलजीत सिंह कौनी,गुरुमुख सिंह लालटन आदि शामिल थे।.
गदर आन्दोलन
1914 में ही गुरदित सिंह संधू ने हांगकांग में रहते हुए गदरवादी आन्दोलन के समर्थको का सहयोग किया,और गदर आन्दोलन से जूडे। इस आन्दोलन का मुख्य अद्देश्य भारत वासियों को ब्रिटीश शासन से स्वंतत्रता दिलाना था।.जिसके चलते उनपर कई बार झुठे आरोप लगे और उन्हे जेल यात्रा करनी पड़ी।. जून 1913 से प्रारम्भ हुआ यह अन्दोलन संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा में भारतीय पंजाबियों एवं अन्य लोगो के समर्थन से चलाया जा रहा था।.
आन्दोलन का मुख्य कारण- बिसवी शताब्दी के प्राम्भिक समय काल में ही भारत में ही रह रहे स्वतंत्रता संग्राम के चलते भारतीय छात्रों और प्रवासियों के मध्य भी राष्ट्रप्रेम की भावना जाग्रत हुई।.अतः जिसके चलते विदेशी मूल के भारतीय नागरिक लाला हरदयाल और उनके सहयोगियों ने मिलकर क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की और विदेशी भारतीयों को एक जूट किया।.इस कार्य में उनका सहयोग क्रांतिकारी नेता तारकनाथ ने किया।.शुरुआती समय काल में इस संगठन का नाम पैसिफिक कोस्ट आफ हिंन्दुस्तान एसोसिएशन था।.अतः इस प्रकार इस आन्दोलन कि शुरुआत 15 जुलाई 1913 में अपने क्रांतिकारी समर्थकों के सहयोग से संयुक्त राज्य अमेरिका में हुई।.धीरे-धीरे इसका संचालन कनाड़ा,पूर्वी अफ्रीका और एशिया में रहने वाले भारतीय प्रवासियों ने भी किया।.
गदर आन्दोलन के मुख्य क्रांतिकारी
गदर आन्दोलन के मु्ख्य क्रांतिकारी 1.लाला हरदयाल सिंह 2.तारकनाथ दास,3.गुरुदित सिंह संधू,4.लाला हर दयाल,5.संत बाबा वासखा सिंह ददेहर,6.बाबा ज्वाला सिंह,7संतोख सिंह 8.सोहन सिंह भकना आदि थे।.
अन्दोलन कर्ताओं द्वारा किये गये प्रमुख कार्य
- 19144 में प्रथम विश्व युद्ध में भारतीय सिपाहियों को अंधा-धुंध झुंका जा रहा था जिसमें भारतीयों का नुकसान छोड़कर फायदा कुछ भी न था।.गदर पार्टी के सदस्य भारतीय सिपाहियों को यह बात समझाने में सफल रहे।. अतः ब्रिटीश सेना में भारतीय मूल के सिपाहियों द्वारा विद्रोह किया गया।.अंग्रेजो ने इस विद्रोह को लाहौर शडयन्त्र का नाम दिया।.उन पर मुकदमा चलाया गया और मुकदने कि सुनवाई के दौरान 42 विद्रोहियों को फांसी पर चढ़ा दिया गया।.इस प्रकार सिपाही विद्रोह को क्रुरता पूर्वक दबा दिया गया। इस घटना से प्रेरित होकर स्पताहिक अखबार में एक इश्तेखार छपवाया गया,जिसका शीर्षक था अंग्रेजी शासन का दूश्मन।.आगे इश्तेखार में लिखा गया कि सरकार से लड़ने के लिए बहादुर सैनिको की जरुरत है। वेतन-मौत,किमत-शहादत,पेंशन-स्वतंत्रता,युद्ध का मैदान-भारत।. जिसके चलते भारतीय लोग इस अन्दोलन से जुड़ते चले गये।.
- आन्दोलन से जुड़े लोग ब्रिटीश भारतीय सिपाहियो के सहयोग से हथियारों कि तस्करी किया करते थे।.
- 1914 कोमागाटा मरु की घटना से प्रभावित होकर अमेरिका में रहने वाले कई हजार भारतीयों ने अपने व्यवसाय और घरों को बेचकर ,अंग्रेजो को भारत से खदेडने के लिए तैयार हो गये। जिसके परिणामस्वरुप गदर पार्टी ओर मजबूत हुई।.
- 1917 में प्रथम विश्व युद्ध कि समाप्त के बाद गदर पार्टी का विभाजन दो गुटों कम्युनिस्ट और समाजवादी गुट में हो गया।.
- गदर पार्टी ने स्वंतत्रता संग्रान सेनानीयों के लिए प्रेरणा स्रोत का काम किया,जिसमें भगत सिंह ,सुखदेव,राजगुरू जैसे क्रांतिकरी छात्र प्रमुख थे।.गदर पार्टी नें स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे सभी क्रांतिकारियों में आज़ादी के बीज बोने का कार्य किया और अपने अधिकारो के प्रति लड़ने के लिए प्रेरित किया।.
सोर्स
1 टिप्पणी:
गदर पार्टी ने देश को आजादी से लड़ने के लिए न केवल मजबूती दी बल्कि आजादी के लिए मौत का खौफ भी मिटा दिया। यह जज़्बा सिख गुरुओं के बलिदान और उनके त्याग से विरसे में मिला।
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